शीर्षक—आँख, लोचन, नयन, नेत्र, चक्षु, दृग, विलोचन, दृष्टि, अक्षि, (मापनी— १२२, १२२, १२२, १२२)
यहाँ से वहाँ तक नयन घूमते हैं
तुझे तो खुशी के पवन चूमते हैं
दिलाशा दिली तनिक मुड़ मुस्कुरा दे
मना लूँ दिवाली गगन झूमते हैं॥-1
कहाँ जा रही हो किधर हैं विलोचन
डगर तो तको तुम इधर हैं नशेमन
बिना पंख के उड़ रही हैं हवाएँ
कहाँ घर शहर है जिधर तुम मुड़ेमन॥-2
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी