वर्षा
आई वर्षा बन नवयौवन।
बोले दादुर,नाचे मयूर, खुश हुए प्रिया – प्रियतम नैना।।
नद ताल तलैय्या उमड़ाए ।
घन घन नभ उमड़ घुमड़ छाये।
उमड़ाईंं ,यौवन पर आईं ,बलखाइ चली सब हिम सुवना ।
आई बर्षा ……………………
खेतों में छाई हरियाली।
निज बगिया सींचे विधि माली ।
सावन के संग झूला झूलें,युवती किशोर खुश दिन रैना ।
आई वर्षा……………………..
बोले दादुर, मयूर, चातक ।
ज्यों जल माँगे प्यासा याचक ।
भीगी भीगी मदमस्त हवा की मदमस्ती का क्या कहना ।
आई वर्षा ………..
आल्हा कजरी गाएँ किसान ।
लहराये गन्ना और धान ।
देखे अपनी उपजी खेती, हरियाएँ कृषको के नैना ।
आई वर्षा………………
जलपक्षी गण करते विहार ।
खुश हुए चल अचल प्रकृति सार ।
धरती के.यौवन के आगे, खुद कामदेव लगता बौना ।
आई वर्षा…………………….
© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी