सरकारी माल
कांस्टेबल शैतान सिंह व दयाराम दो मोटे – तगड़ें वनमानुषों को घसीटते हुए लाये और दोनों को हवालात में बंद कर दिया |
सबइंस्पेक्टर अपनी कुम्भकरणी नींद से जागे और दोनों होनहार कांस्टेबलों को पास बुलाया –
‘ कहॉ से पकड़ लाये इन दो मुछतंडों को रे ‘……
शैतान सिंह सलाम ठोकते हुए बोला – ‘ सर… एक ग्राम प्रधान है दूसरा ग्राम कोटेदार… दोनों हरामखोर मिलकर सारा का सारा सरकारी माल चट कर रहे थे और अपन…. मतलब आपका – हमारा हिस्सा भी नहीं निकाल रहे थे, इसीलिए ससुरों को उठालाये |’
‘ लाओ बाहर दोनों को अभी इनकी क्लास लेता हूँ |’ इंस्पेक्टर साहब लाल – पीले होकर चिल्लाये |
‘ माई – बाप… गलती हो गई अब आगे से औरों की तरह आपका भी हिस्सा आप तक पहुंचता रहेगा | ‘ ग्राम प्रधान सिकुड़ते हुए चमचे वाले लहजे में गुड़गिड़ाया |
‘ चल ठीक है, अभी कितने देगा ‘….
‘ पूरे पचास हजार… इतने ही बच पाए हैं… सब को दे दिवाके ‘…. कोटेदार इंस्पेक्टर के पैर दबाते हुए गिड़गिड़ाया |
दस मिनट के बाद सरकारी टेबल के नीचे से सरकारी माल सरकारी जेबों में चला गया…. |
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा