गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुझे अस्तित्व ने परखा बहुत है
कि मैंने भी उसे सोचा बहुत है

उसी का जिक्र करती हैं ये साँसें
महकता भी वो खुशबू सा बहुत है

मेरी जानिब वो झाँके कनखियों से
मेरे हिस्से में बस इतना बहुत है

मिलेगा वो अगर पहचान लेगा
कि उसने तो मुझे देखा बहुत है

हम उसके पास जिद करके चलेंगे
सुना है ‘शान्त’ वो तनहा बहुत है

देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ