व्यंग्य : चोटी की प्रधानता
हमारे देश में आजकल धड़ाधड़ चोटियां काटी जा रही हैं ।अभी बिहार में लालू यादव की चोटी कट गई ।देश में कांग्रेस की चोटी प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति यहां तक की उपराष्ट्रपति पद तक कट गई।जी एस टी के तहत बड़े बड़े टैक्स चोरों की चोटियां कट गयीं। नोटबंदी में भ्रस्टाचारियों की और कालाधन रखने वालों की चोटियां कट गई । इन बातों से ये साबित होता है कि हमारा देश चोटी प्रधान देश है।जो भी चोटी पर पहुँचता है चाहें किसी भी तरह से पहुंचे उसकी चोटी काटना एक जायज़ काम होता है चोटी से नीचे वालों के लिए ।ऊँचे लोगों की चोटी काटना हमारे देश में एक नैतिक कर्तव्य है ।अगर किसी ऊँचे आदमी की चोटी नहीं कट रही है तो समझ लेना चाहिए कि वो बहुरूपिया है ।हमारे देश में भी इसीलिये सदियों से ऊँचे लोगों में चोटी रखने और उसे सुरक्षित रखने का रिवाज़ पड़ा ।तभी चोटी के लोग कभी धरातल पर उतर कर नहीं देखते । असल में चोटी कटने का डर उन्हें धरातल पर नहीं आने देता। क्योंकि चोटियां धरातल पर या रसातल पर ही काटी जाती भी हैं ।
चोटी कटने की घटनाएं किसी मेट्रो उन्नत शहर में नहीं होती । हमेशा ही पिछड़े अविकसित क्षेत्रों में ही चोटी कटने लगती है,कभी गणेश जी दूध पीने लगते हैं कभी मुँह नुचने लगते हैं। मैं आश्चर्य में हूँ की गणेश जी विदेश में दूध क्यों नहीं पीते। अमरीका लन्दन में कोई कभी किसी की चोटी क्यों नहीं कटती । हमारे ही देश में ये सब इतना समय क्यों दे रहे हैं ये अपना बिज़नस बाहरी देशों तक क्यों नहीं फैलाते कभी !!
मैं हैरान हूं आखिर उन्नतिशील वर्ग में भी जो लोग चोटी में गांठ बांध कर रखते हैं उनकी चोटी क्यों नहीं कटती!! अंबानी ,अडानी आदि आदि की चोटी न छोटी होती है न ही कभी कटती है ।जबकि मामूली ढेल वाले तक की चोटी कट जाती है।
इसी तरह हमारे ही देश में हमारी ही धरती कश्मीर में हम आतंकियों की चोटी नहीं काट पाते जो पत्रकार पिछड़े इलाकों में यमुना ,गंगा की बाढ़ मेबहकर भी घर -घर घुस कर चोटी कटने की खबरें लाकर अपनी तरह से प्रचारित कर देता है वो यहां तक कि मुफ्त में कश्मीर की महबूबा बनी मोहतरमा की चोटी देख तक नहीं पाता कि है या पाकिस्तान में गिरवी पड़ी है।कश्मीरियों के घरों में चोटी कौन काट रहा है ,अभी तक कितनी चोटियां काटी जा चुकी हैं, ये कोई खबर नहीं ला पाता ।इस बात से ये भी साबित होता है कि क्या चोटियां हमेशा अविकसित ,अनपढ़ों ,पिछड़ों और जरूरतमंदों की ही कटती हैं।
मज़े की बात ये है कि और तो और गूगल भी औरतों की ही चोटी काटने में लगा है । मतलब गूगल ये कहना चाहता है कि सारे ही पुरुष घोड़े होते हैं कोई गधा नहीं होता पुरुष होना ही बौद्धिक होने की निशानी है । क्षमता की बात औरतों के लिए है पुरुषों के लिए नहीं। गूगल के हिसाब से अब सभी जगह गधों को गधा नहीं कहा जायेगा क्योंकि वे पुरुष हैं । अगर ये ही सच है तो फिर लोमड़ी को मूर्खता का पर्याय क्यों नही माना गया हमेशा से गधे को ही मूर्खता का पर्यायवाची क्यों मानते हैं ये मेरी समझ से बाहर है।
कुल मिलाकर देखा जाये तो कुछ ही दिनों में भारत एक ऐसे चोटी प्रधान देश के रूप में जाना जायेगा जहाँ अपनी चोटी बचाये रखने के लिए लोग दूसरों की चोटियां काटते हैं और देश के खोखले होने की दुहाई चिल्ला चिल्ला कर देते हैं। अगर गौर किया जाये तो इस देश में हर दूसरे तीसरे आदमी की चोटी किसी न किसी के घर गिरवी रखी मिलेगी। क्योंकि भारत महान है।