गीतिका : देश सेवक
सच्चे देश सेवकों की अब कमी लगती है।
सुभाष भगत आज़ाद की अब कमी लगती है।।
चहुँ ओर हिंसा ने पैर जमा लिए हैं देखो।
आज के दौर में देशभक्तों की कमी लगती है।।
उठा भुजा जो चले रण में शत्रु सारे उखाड़ दे।
ऐसे महावीर की आज कमी लगती है।।
स्वार्थपरता की आंधी उड़ाती अब संस्कारों को।
घर परिवारों में रिश्तों की कमी लगती है।।
सोच नहीं समर्पण की पहले जैसी अब लोगों में।
सदविचारों के विस्तार की अब कमी लगती है।।
— कवि राजेश पुरोहित