लघुकथा

लघु कथा : भूखी जान

उसे भूख लगी थी, परंतु जेब में पैसे न होने के कारण टाउन पार्क में जा प्रकृति के सौंदर्य का नयन सुख और आराम करना ही उसे उचित लगा। पार्क में लगे वाटरकूलर से पानी पी बरगद के पेड़ के नीचे लगे बैंच पर बैठ वह भूखे पेट परमानन्द का अनुभव कर रहा था। चिड़ियों की चहचहाट और हल्की हवा अलग ही संगीत पैदा कर रही थी। गिलहरियाँ खाना खोजती हुई अठखेलियाँ कर रही थी।
अचानक चिड़ियों की चहचहाट कोलाहल में बदल गई। गिलहरियाँ भी ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी। अन्य पेड़ों पर बैठे छोटे पक्षी भी कोलाहल मचाने लगे। उसे समझ नहीं आया कि शांत मनोहर वातवरण अचानक कोहलाहल में क्यूँ बदल गया। उसने इधर उधर देखा तो उसे नज़र आया एक कौवे ने चिड़िया के एक नवजात बच्चे को अपनी चोंच में दबा रखा था।
वह समझ नहीं पा रहा था कि चिड़िया के बच्चे को कौवे से छुड़वाने का प्रयास कर बच्चे की जान बचाए या ना छुड़वाकर भूखे कौवे की भूख मिटने दे।

© विजय ‘विभोर’
11/08/2017

विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : [email protected]