ग़ज़ल
दास्ताँ दर्दे दिल की सुनाते रहे।
वो हमें देख कर मुस्कराते रहे।
टूट करके बिखरने से क्या फायदा।
ये गलत है उन्हें हम सिखाते रहे।
जब कभी देखा गम़गीन मैने उन्हें।
आँख में अश्क अपने छुपाते रहे।
हम शिकायत करें भी तो किस से करें।
जब खुदा खुद ही मुझको सताते रहे।
याद में हम उन्ही के तो शायर बने।
गा सके ना ग़ज़ल गुनगुनाते रहे।
बेखबर को खबर हर पलों की जो थी।
इन पलों मे वो सपने सजाते रहे।
— बेख़बर देहलवी