“कता/मुक्तक”
सुन रे गुलाब मैं तुझसे मुहब्बत पेनाह करता हूँ।
पर ये न समझना कि निरे काँटों में निर्वाह करता हूँ।
आकर देख तो जा तनिक मेरे हाथ भर बगीचे को-
बिछी है मखमली घास खिले फूल हैं चाह करता हूँ॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी
सुन रे गुलाब मैं तुझसे मुहब्बत पेनाह करता हूँ।
पर ये न समझना कि निरे काँटों में निर्वाह करता हूँ।
आकर देख तो जा तनिक मेरे हाथ भर बगीचे को-
बिछी है मखमली घास खिले फूल हैं चाह करता हूँ॥
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी