कान्हा
कुछ ऐसा कर दे ,कान्हा !
प्रेम सुधा भर दे ,कान्हा !
जो बेघर फुटपाथों पे,
इनको भी घर दे,कान्हा !
मिट जाऊँ मानवता पर,
कुछ ऐसा वर दे, कान्हा !
पाञ्चजन्य बन गूँज उठें,
भावों को स्वर दे, कान्हा !
पुजते,झूठे लोगों को-
तू पत्थर कर दे कन्हा !
मैं कोई विध्वंस लिखूँ
कलम जहर कर दे कान्हा!
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी