कविता

“सार छंद”

सार छंद [सम मात्रिक], *विधान* ~ [ 28 मात्रा, 16,12 पर यति, अंत में वाचिक भार 22, कुल चार चरण, [क्रमागत दो-दो चरण तुकांत]

महिमा गुरु की हो जाये तो

तट लग जाये नैया।

शुद्ध ज्ञान गीता से आये

जय हो कृष्ण कन्हैया।।-1

भगत भाव भगवान बहूते

नाचे ताता छैया।

वन बिन मोर ढेलनी कैसी

ये किन छवि है दैया।।-2

होगी कैसे सुद्ध भावना

करो जतन कुछ भैया।

मन को धन से दूर करो जी

धन है निर्मल गैया।।-3

महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ