“सार छंद”
सार छंद [सम मात्रिक], *विधान* ~ [ 28 मात्रा, 16,12 पर यति, अंत में वाचिक भार 22, कुल चार चरण, [क्रमागत दो-दो चरण तुकांत]
महिमा गुरु की हो जाये तो
तट लग जाये नैया।
शुद्ध ज्ञान गीता से आये
जय हो कृष्ण कन्हैया।।-1
भगत भाव भगवान बहूते
नाचे ताता छैया।
वन बिन मोर ढेलनी कैसी
ये किन छवि है दैया।।-2
होगी कैसे सुद्ध भावना
करो जतन कुछ भैया।
मन को धन से दूर करो जी
धन है निर्मल गैया।।-3
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी