कविता : कुछ यूँ मुहब्बत कर लो ,कि नफ़रत जल-जल के ख़ाक हो जाये..
कुछ यूँ मुहब्बत कर लो ,कि नफ़रत जल-जल के ख़ाक हो जाये..
कुछ यूँ इबादत कर लो,कि मन्दिर-मजजिद एकमत एक-विश्वास हो जाये….
देखो वो सोने की चिड़िया दूर बैठी-बैठी तक रही है…
अपने उजड़े घोंसले कि टहनी -टहनी पे,
आस के मोती चुग रही है….
तो आओ ,चुन-चुन के प्यार के धागे
इस घरौंदे को पुन: सींच दें…..
“सोने की चिड़िया ” की वापसी का पथ सींच दें……
फिर हम गर्व से कह उठेंगे ….
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा…
वो भारत देश है मेरा…..
वो भारत देश है मेरा…..
-राज सिंह