कविता

कविता : हमें गांव आना तो था

माना कि हमें गांव आना तो था
मुन्ने को साइकिल दिलाना तो था
मुन्नी को झूला झुलाना तो था
तुम्हारे बालों में गजरा लगाना तो था
पर देश ने जब पुकारा मुझे
पहले उसे बचाने जाना तो था।
वो बात अलग है कि हमें गांव आना तो था।।
मां के हाथों की रोटी को खाना तो था
बाबू जी की आंखों को दिखाना तो था
बहन का रिश्ता कराना तो था
भाई को जिम्मेदारी समझाना तो था
पर देश की जिम्मेदारी भी मुझ पर थी
उसको भी पहले निभाना तो था।
वो बात अलग है कि हमें गांव आना तो था।।
घर की टपकती छत को बनाना तो था
खेतों में पानी लगाना तो था
बैलों की जोडी़ को लाना तो था
दोस्तों को फौज के किस्से सुनाना तो था
गांव की गलियों में मस्ताना तो था
पर दुश्मन को उसकी नापाक जुर्रत पर
मुझको सबक सिखाना तो था।
वो बात अलग है कि हमें गांव आना तो था।।
करवाचौथ तुम संग मनाना तो था
कुछ पल तुम संग बिताना तो था
दीवाली पर घर को सजाना तो था
बहना से दौज का टीका लगवाना तो था
फिर उपहार के नाम पर सताना तो था
अपने रूठों को फिर से मनाना तो था
पर देश पर मिटने का जो दिया था वचन
वो भी तो हमको निभाना तो था।
वो बात अलग है कि हमें गांव आना तो था।।
(तिरंगे लिपटे अपने शहीद पति के मन के भाव पढ़ती उसकी पत्नी)
राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 [email protected]

2 thoughts on “कविता : हमें गांव आना तो था

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत !

    • राज सिंह रघुवंशी

      आभर सर ।।

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