गजल : कही नज़रो के वो इशारे कहाँ हैं
कही नज़रो के वो इशारे कहाँ हैं
मिले ग़म में हमको सहारे कहाँ हैं
छुपाते हो दिल में कई राज़ अपने
अदाओ में तेरे अब शरारे कहाँ हैं
चला कोई जादू नज़र का दिलों पे
तो हम भी दिलो को सँवारे कहाँ हैं
कहा चल दिये ऐसे पागल बनाके
हुसन के तेरे सारे ही मारे कहाँ हैं
करें शोर सारी ये ज़ालिम फ़ज़ा अब
बचे उससे कोई नज़ारे कहाँ हैं
लगाते हो इल्ज़ाम हमपे सदा ही
रहे फिर हम तुम्हारे प्यारे कहाँ हैं
गिराती बिजलियां दिलों पे ऐसी
तभी से ही ख़ुद को सँवारे कहाँ हैं
-राज सिंह