मुक्तक/दोहा मुक्तक राज सिंह रघुवंशी 16/08/2017 अब तो जूठन भी नसीब नहीं होती पेट के मारो को सारे जलसे ऊँची इमारतों के फानूस में टंगे होते हैं -राज सिंह