प्यार की बून्दें
तन्हा होती हूँ जब
अपने आप से बातें करती हूँ
कभी सोचती हूँ
कि तुम न होते तो…
कोने में टेबल पर रखा
तुम्हारा दिया लाल गुलाब
अब सूखने को है
देकर अपने अहसास मुझे,
टपकी फिर कुछ बून्दें
मेरे अर्न्तमन में प्यार की
सुनो क्या हमारे इश्क के
बीच कुछ अलग सा
अहसास नहीं
कभी कभी बस कुछ सोचकर बैसिरपैर की बातें
जवां कर लेती हूँ अपने
पुराने खतों की स्याही को
आज ये गुलाब फिर महका देगा
अपने प्यार की बून्दों से
मेरे तेरे उलझे से प्रेम को।
सुनो लाते रहा करो ना
लाल गुलाब मेरे तुम्हारे इश्क के लिये।
अल्पना हर्ष,बीकानेर