लघुकथा

मोह का दीया

शाम ढलने लगी थी लेकिन पिछले दो पहर से बंगले के बाहर एक पत्थर पर बैठे बिप्ति के मन में, चौकीदार के बार बार मना करने के बावजूद अभी भी आस का दीया जल रहा था कि एक बार मालिक बाहर आ जाए तो अवश्य उसकी बात सुनेंगे।
वह और रुके या लौट जाए की उधेड़बुन में उसकी नजरें बार-बार गेट की ओर जा रही थी कि अचानक उसे, गेट पर मालिक नजर आ गए जिनके पास उसने कई वर्ष माली का काम किया था। वह दौड़ता हुआ उनके सम्मुख जा पहुंचा।

“राम राम.. मालिक! मैं बिप्ति, एक बार मुझे मेरी बबुआ से मिलवा दो। बस एक बार।”

“तुम यहां इस समय।” उसे देख वह नाराज हो गए। “और मैंने तुम्हे मना किया था न शहर लौटकर आने के लिये।

“हां मालिक, आप मना किये थे लेकिन हम रह नही पाये। बस एक बार आप बबुआ से मिलवा दे तो बहुत दया होगी हम पर।” कहते हुए बिप्ति रोने लगा।”

“बिप्ति, गया समय लौटकर नही आता। तुमने माली होकर भी उस पौधे को अपने बगीचे से उखाड़ फेंका जिसे तुम्हारी देखभाल की सबसे अधिक जरूरत थी। अब उसके मोह के जलते दीये को बुझा दो और उसे अपना जीवन जीने दो।”

“मैं जानता हूँ मालिक, हमने बहुत गलत किया। लेकिन आप तो इतने कठोर न बनो।” भीगे स्वर में बिप्ति ने एक आखिरी उम्मीद से फिर कहा।

“हाँ…, सही कहते हो तुम। मुझे इतना कठोर नहीं बनना चाहिए।” सहसा वह गंभीर हो गए। “जिस दिन तुमने अपने अपाहिज नवजात को मुझे चंद रुपयों के बदले सौंप दिया था, उसी दिन मुझे समझ लेना चाहिए था कि तुम्हारा ये ‘मोह’ बार-बार तुम्हे, मेरे दरवाजे पर लेकर आएगा। ये लो तुम्हारे मोह की कीमत।” कहते हुए उन्होंने अपनी जेब से कुछ नोट निकाल उसके सामने कर दिए।

“नहीं मालिक नहीं, मुझे इनकी जरूरत नही अब। बरसों की तड़प के बाद समझा हूँ कि औलाद तो पैसे का सुख दे सकती है पर पैसा कभी औलाद नहीं बन सकता। सुखी रहे आप।” कहता हुआ बिप्ति पलट चुका था, कभी न लौटने के लिए।

विरेन्दर 'वीर' मेहता

विरेंदर वीर मेहता जन्म स्थान/निवास - दिल्ली सम्प्रति - एक निजी कंपनी में लेखाकार/कनिष्ठ प्रबंधक के तौर पर कार्यरत। लेखन विधा - लघुकथा, कहानी, आलेख, समीक्षा, गीत-नवगीत। प्रकाशित संग्रह - निजि तौर पर अभी कोई नहीं, लेकिन ‘बूँद बूँद सागर’ 2016, ‘अपने अपने क्षितिज’ 2017, ‘लघुकथा अनवरत सत्र 2’ 2017, ‘सपने बुनते हुये’ 2017, ‘भाषा सहोदरी लघुकथा’ 2017, ‘स्त्री–पुरुषों की संबंधों की लघुकथाएं’ 2018, ‘नई सदी की धमक’ 2018 ‘लघुकथा मंजूषा’ 2019 ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशस्त्र’ 2019 जैसे 22 से अधिक संकलनों में भागीदारी एवँ किरदी जवानी भाग 1 (पंजाबी), मिनी अंक 111 (पंजाबी), गुसैयाँ मई 2016 (पंजाबी), आदि गुरुकुल मई 2016, साहित्य कलश अक्टूबर–दिसंबर 2016, साहित्य अमृत जनवरी 2017, कहानी प्रसंग’ 2018 (अंजुमन प्रकाशन), अविराम साहित्यिकी, लघुकथा कलश, अमर उजाला-पत्रिका ‘रूपायन’, दृष्टि, विश्वागाथा, शुभ तारिका, आधुनिक साहित्य, ‘सत्य की मशाल’ जैसी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित। सह संपादन : भाषा सहोदरी लघुकथा 2017 (भाषा सहोदरी), लघुकथा मंजूषा 3 2019 (वर्जिन साहित्यपीठ) एवँ लघुकथा कलश में सम्पादन सह्योग। साहित्य क्षेत्र में पुरस्कार / मान :- पहचान समूह द्वारा आयोजित ‘अखिल भारतीय शकुन्तला कपूर स्मृति लघुकथा’ प्रतियोगिता (२०१६) में प्रथम स्थान। हरियाणा प्रादेशिक लघुकथ मंच द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता (२०१७) में ‘लघुकथा स्वर्ण सम्मान’। मातृभारती डॉट कॉम द्वारा आयोजित कहानी प्रतियोगिता (२०१८) ‘जेम्स ऑफ इंडिया’ में प्रथम विजेता। प्रणेता साहित्य संस्थान एवं के बी एस प्रकाशन द्वारा आयोजित “श्रीमति एवं श्री खुशहाल सिंह पयाल स्मृति सम्मान” 2018 (कहानी प्रतियोगिता) और 2019 (लघुकथा प्रतियोगिता) में प्रथम विजेता।