लघुकथा – बेटियां एक ताना
“क्यों बाप की छाती पर बैठी है ” दादी 12 वर्षीय पोती प्रिया को दहलीज पर बैठे हुए देखकर बोली, “कितनी बार कहा है दहलीज पर मत बैठा कर”
“मेरा बाप है कहीं भी बैठू, आप कोसना बन्द कीजिए, मे लडकी हूं तो “
“हे भगवान् …..मेरे बेटे की तो किस्मत ही फूट गई, जो बहू मिली तो बेटियां पैदा करने की मशीन और बेटियां भी मुंह फट, मैने तो पहले ही कहा था गिरा दे पर मेरी सुनता कौन है “
प्रिया गुस्से में छत की तरफ बड गई.
“कहां चली ”
“मरने ” कुछ सोच वापस आ गई ।
“क्या हुआ इरादा बदल गया” दादी का व्यंग्य चालू था ।
“पहले आपकी पुलिस मे रिपोर्ट कर दू, वरना मेरे मरने के बाद आपकी रिपोर्ट कौन करेगा?”
“इत्ती सी छोरी इतनी बडी बात कर रही ”
“और आप इतनी बडी होकर मेरी पेट में ही हत्या की प्लानिंग कर रही थी वो………” आगे मां के डांटने पर चाहते हुए भी कुछ न बोल पाई
— रजनी चतुर्वेदी