गज़ल
मुकम्मल गर हमारी भी दुआ इस बार हो जाये
तो मुमकिन है हमारी जिंदगी गुलज़ार हो जाए
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चलो अब तो करें मिल कर मुहब्बत का कोई वादा
कहीं ऐसा न हो के आपसी तकरार हो जाए
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हमारी भी मुहब्बत में खुदा इतना असर देना
जिसे इंकार है अब तक उसे इकरार हो जाए
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कहें हम भी कभी दिल की कहो तुम भी कभी दिल की
जो दिल में दूरियाँ है वो सभी मिस्मार हो जाए
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हमे अपने मुकद्दर से शिकायत अब नहीं कोई
सफर करना है तय राहें भले पुरखार हो जाये
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खुशी देना नहीं देना तेरी मर्जी मेरे मालिक
न इतना गम हमें देना कि दिल बेज़ार हो जाये
रमा प्रवीर वर्मा…..