जल प्रबंधन
सही – सही हो अगर
जल प्रबंधन तो
न हो हानि जन की – धन की
न हो हाहाकार
न गाँव – शहर बनें समुन्द्र
बहे नदी कल – कल
न धरे रौद्र रूप… |
पर इस मानवी लालच ने
छेड़ा है प्रकृति को
किया है दोहन अत्यधिक
विकास के नाम पर
नदियों को पाट दिया
वृक्षों को काट दिया |
पहाड़ों को किया है नंगा
जंगलों की करके सफाई
कंकरीट के नये – नये जंगल बनाये हैं
मानव ने पशु – पक्षियों के घर जलाये हैं
प्रकृति ने बदले में मानव के घर बहाये हैं |
सही – सही हो अगर
जल प्रबंधन
और प्रकृति को न छेड़ा जाये तो
ये धरती स्वर्ग बन जायेगी
मानव सभ्यता बच जायेगी… ||
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा