“लंगोटिया यार”
देश विदेश, न जाने मेरे लंगोटिया यार (आज के दौर में कहें तो डायपरिया यार) मित्र हीरालाल यादव जी, अपनी बिना सीट वाली सायकल से लगभग बीस वर्षों से यात्रा कर रहें हैं। परिचय के मोहताज नहीं हैं क्यों कि धूनी प्रवृत्ति और परोपकारी मन कहीं छुप के तो बैठता नहीं, लोगों में विचरण करना ही उसका आनंदमय जीवन होता है और घर बार के लिए नाम मात्र के पहरेदार भाई हीरालाल जी, देश के वीर और शहीद सपूतों की शौर्य गाथाओं को अपने द्विचक्री रफ्तार से जो काम कर रहें हैं शायद ही कोई इस जनून से करता होगा। बेटी बचाओ, पर्यावरण की हरियाली और स्वच्छता के लिए सैनिक छावनी, जनपद न्यायालय, जेल, स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में घूम-घूम कर देश के भविष्य को जागरूक करते रहते हैं। देश का शायद ही कोई कोना इनसे अपरचित हो, शायद ही कोई ऐसी सड़क हो जिसपर इनकी रात न गुजरी हो। दो जून की रोटी के लिए इतने विशाल भारत माँ के आँगन में इनकी रसोई का क्या कहना, जब पेट ने पुकारा कहीं किनारे जो नजर आया उसी शाकाहारी प्रसाद से पेट पूजा हो गई।
कल रात करीब ग्यारह बजे मेरे घर की घंटी बजी तो झुँझलाकर उठा कि कौन इस टपकती रात में भी प्यासा है, हर जगह पानी ही पानी। खैर भुनभुनाते हुए दरवाजा खोला तो अपनी गठरी- मोटरी सायकल पर बाँधे हुए हीरा जी उसी पुराने अंदाज में मुस्कुराते हुए भीग रहे थे। आँखे चौधिया गई इस साठ साल के नौजवान को देखकर जिसके हिम्मत और जज्बे को सलाम तो बहुत से लोग करते होंगे, पर मैं तो नमन ही करता रह गया। गले लग गए यह कहने की बात नही है दिल मिल गए इसे महसूस करने की बात है। मेरी श्रीमती जी परिचित अंदाज में बोली कि रोटी सब्जी बना देती हूँ, तपाक से मितवु ने अपना बीटो लगाया, भूख नही है और चुरा दूध पर समझौता हो गया। रात बातों में बीती तो सुबह गपियाने में। राहें कब अपनी चाल बदलती हैं, बहुत कहने के बाद भी चाय और बिस्कट ही नशीबदार रहा और सायकल बिजनौर, हरि की पौड़ी हरिद्वार, अंबाला छावनी होते हुए दिल्ली के दिलों पर सरकने लगी, कुछ दूर तक ताका-झाँकी होती रही फिर ओझल तो होना ही था यादों का पुलिंदा लिए……यह सपर्पित यात्रा मंगलमय हो और हम क्या कहें…… अंतरजाल, सायकल यात्री हीरालाल का यह नाम, शब्द सब कुछ कहने करने में सक्षम है…… जय हिंद, वंदेमातरम…..
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी