कविता

बाल संहार

रो पड़ा था गोरखपुर
रोया सारा हिन्दुस्तान था
बेरहम व्यवस्था ने छिना
जब बच्चों का आसमां था
बिखल पड़ी मां की ममता
पिता के अश्रु रुक न पाये थे
जब बच्चों के मुर्दा शव
सधे हाथों में आये थे
टूटा आसुंओं का सैलाब
धरती ने मातम गाया था
मां के आंचल में दूध नहीं
अब रक्त उतर आया था
स्वप्न हुए सारे धूमिल
आशाओं की अर्थी उठी थी
शमशान हुआ शहर
एक साथ कई चिताएं जली थी
डिजिटल भारत पर उठे
मन में कई सवाल थे
जख्म हरा भरा था
मिले किये गहरे घाव थे
लापरवाही हुई भारी पर
तुमने गलती अपनी कहां स्वीकारी थी
पद का दंभ संवेदनाएं स्वाह कर गया
कुर्सी बचाने की जंग जारी थी
तुमने कहा मरते अगस्त में कई बच्चें
खून मेरा खौल उठा था
काली जुबान काट लूं तुम्हारी
मेरे अंदर का एक इंसान बोला था
बच्चें नहीं तुम्हारे
तुम क्या जानोगे दर्द उन लोगों का
एक बच्चा नहीं मरता
मरता है साथ में पूरा परिवार जिनका
अब तुम सच सच यह भी बतला दो
कैसा न्यू इंडिया बनाने वाले हो
दाना मांझी बाल संहार विलाप दिखाकर
क्या मरघट के ख्वाब दिखाने वाले हो

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]