इंसानियत – एक धर्म ( भाग – सत्ताईसवाँ )
सुबह के लगभग आठ बज चुके थे जब बस प्रतापगढ़ के सरकारी बस अड्डे में घुसी थी । मुनीर बस अड्डे से बाहर की तरफ निकला । सिर पर गमछा बांधे वह एक देहाती जैसा ही लग रहा था । बस के खलासी व यात्रियों में से भी उसे कोई पहचानने वाला नहीं मिला था इस बात की उसे बेहद खुशी हो रही थी । अपनी योजना के मुताबिक अब उसे रात के हादसे के बारे में सही वस्तुस्थिति का पता लगाना था । बस अड्डे के बाहर एक पुस्तक विक्रेता की दुकानपर ताजे अखबार भी बेचने के लिए रखे हुए थे ।
मुनीर ने अपनी पसंद का एक स्थानीय अखबार ‘ रामनगर टाइम्स ‘ खरीद लिया । बगल में ही चाय वाले की दुकान थी । उसे चाय के लिए कह कर बेंच पर बैठकर अखबार पढ़ने लगा ।
अखबार के मुख्यपृष्ठ पर ही दरोगा आलम के रक्तरंजित शव की तस्वीर छपी थी और उस तस्वीर के ऊपर बड़े अक्षरों में समाचार का शीर्षक लिखा था ‘ रामनगर के नायब दरोगा आलम की सनसनीखेज हत्या ‘ । खबर का शीर्षक पढ़ कर ही मुनीर सिहर सा गया । यह तो उसने सोचा ही नहीं था कि असलम की पिटाई से आलम की मौत भी हो सकती है ।
तब तक चायवाला चाय रख गया था लेकिन मुनीर को चाय की कहाँ फिक्र थी । वह तो अखबार पढ़ने में मशगूल था । वह आगे पढ़ने लगा ‘ रामनगर और प्रतापगढ़ को जोड़नेवाले महामार्ग पर ग्राम सरौनी के नजदीक कल रात रामनगर के नायब दरोगा आलम की नृशंस हत्या हो गयी है । उनका रक्तरंजित शव सड़क के किनारे उगी सरकंडों की झाड़ियों में पाया गया है । सिर पर किसी भारी चीज से वार करके हत्या किए जाने का शक जताया जा रहा है । सूत्रों के हवाले से खबर है कि दरोगा आलम की हत्या में विभागीय रंजिश एक बड़ी वजह हो सकती है । शक के आधार पर एक सिपाही असलम को गिरफ्तार कर लिया गया है । जब कि दूसरा सिपाही जिसका नाम मुनीर बताया जा रहा है फरार है । फिलहाल मुनीर नाम का वह सिपाही भी संदेह के घेरे में है और उसकी तलाश के लिए जांच टीम बना दी गयी है ।
सूत्रों के हवाले से खबर यह भी है कि दरोगा आलम के शव के साथ ही एक युवक भी घायल अवस्था में पाया गया है जिसे रामनगर शहर के सिटी हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती करा दिया गया है । गंभीर जख्मी उस युवक की हालत नाजुक है और डॉक्टरों की एक टीम सघन चिकित्सा विभाग में उसे बचाने के लिए प्रयासरत है । ‘ ………
अभी मुनीर ने समाचार पूरा पढ़ा भी नहीं था कि चायवाला फिर सामने आ गया और उसे टोकते हुए बोला ” चाय पी लो बाबू ! ठंडी हो गयी तो बेमजा हो जाएगी । ”
फिर उसके हाथ में अखबार में आलम के शव की तस्वीर देखते हुए बोला ” देखो ! क्या जमाना आ गया है । जिनका काम जनता की रक्षा करना है वो खुद अपनी रक्षा भी नहीं कर पा रहे हैं । अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं फिर क्या करे आम आदमी ? उनकी रक्षा कौन करेगा ? ”
मुनीर ने सिर ऊपर उठाते हुए चायवाले की तरफ देखा और मुस्कुरा कर चाय का प्याला हाथ में लेकर चाय सुड़कने लगा । चाय वाकई मजेदार थी । चाय पीते हुए मुनीर अखबार में पढ़ी समाचार की हर लाइन पर गौर कर रहा था । समाचार के मुताबिक पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए टीम गठित कर दी है । यह समाचार उसके लिए चौंकानेवाला था । यह जानकर वह और भी चिंतित हो उठा कि वह भी संदेह के घेरे में था । असलम की गिरफ्तारी से यह बात साफ हो गयी थी कि आरोप उसपर भी लगे होंगे इसीलिए पुलिस को उसकी तलाश है । गनीमत है वह घायल युवक अभी सलामत है । वह जानता था ज्यादा देर तक एक जगह रहना उसके लिए नुकसानदेह हो सकता है अतः चाय खत्म करके वह शीघ्र ही उठ खड़ा हुआ और चायवाले को पैसे देकर एक तरफ चल पड़ा । उसे खुद पता नहीं था वह कहां जा रहा है और क्यों जा रहा है बस चलता जा रहा था । और लगभग आधा घंटा चलने के बाद उसे थोड़ी थकान महसूस हुई और वह सड़क किनारे एक जगह एक खाली बेंच देखकर उसपर बैठ गया । मानसिक तनाव पर काबू पाने का प्रयास करता हुआ मुनीर आंखें बंद कर बेंच की पुश्त से पीठ टिकाकर बैठा रहा ।
बच्चों को पाठशाला के लिए तैयार करने के बाद शबनम ने पडोस के रामुकाका के दोहते अर्जुन को आवाज लगाई । अर्जुन भी स्कूल के लिए तैयार हो गया था । अर्जुन आबिद से उम्र में बड़ा था और उसी स्कूल में कक्षा पांचवीं का विद्यार्थी था । वही रोज सुबह आबिद और जावेद को अपने साथ स्कूल ले जाता और फिर शाम को सभी बच्चे वापस घर आ जाते । उनमें आपस मे बड़ा प्रेम था । अर्जुन स्कूल में भी उनके संरक्षक की तरह ही होता । उसके होते किसकी मजाल थी कि आबिद और जावेद से उलझ जाते ? बच्चों के स्कूल जाने के बाद शबनम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गयी । रोज घर के कामों को करते हुए हमेशा गीत गुनगुननेवाली शबनम के होठों से गीत आज रूठ से गए थे । वह खामोशी से रात के पड़े हुए जूठे बर्तन मांज रही थी । उसके हाथ चल तो रहे थे लेकिन दिमाग में अभी मुनीर की पहेली ही उलझी हुई थी । मुनीर की हरकत उसे रहस्यमय लग रही थी । इतना तो वह समझ ही गयी थी मुनीर उससे कुछ छिपा रहा है लेकिन क्या ? यह लेकिन ही उसे बेचैन किये हुए था । इस एक सवाल से ही वह रातभर जूझती रही थी और अभी भी इसी सवाल को हल करने में वह अपने दिमाग को उलझाए हुए थी । इसी उलझन में उसने बर्तन कुछ ज्यादा ही घिस दिए थे । जब तक उसे सुध न होती वह बर्तन घिसते ही जाती और फिर अचानक चौंक कर अपनी वस्तुस्थिति का भान होते ही उसे छोड़कर दूसरा बर्तन उठा लेती । सुबह से उसने कुछ नाश्ता भी नहीं किया था फिर भी जैसे उसकी भूख प्यास ही मर गयी हो । उसकी खाने की कुछ भी इच्छा नहीं थी लेकिन दोपहर की छुट्टी में स्कूल पास में ही होने की वजह से बच्चे भोजन करने घर पर ही आनेवाले थे । किसी भी हाल में उसे बच्चों का ख्याल तो रखना ही था ।
रसोई घर में रसोई की तैयारी में व्यस्त शबनम दरवाजे की कुंडी खटखटाने की आवाज से चौंक गयी । कौन हो सकता है ? अनमने मन से उसने जवाब दिया ” आयी ! ” और फिर दरवाजे की तरफ बढ़ गयी ।
मन में उठ रहे हजारों सवालों के साथ उसने दरवाजा खोलकर बाहर झांका । बाहर नायाब दरोगा पांडेयजी दो हवलदारों के साथ खड़े थे ।
बहुत रोचक कड़ी, भाईसाहब ! आपकी लेखनी में जादू है.
आदरणीय भाईसाहब ! बेहद सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, मुनीर का अपराधबोध उसे बेचैन किए हुए है, तो शबनम को भी चैन कहां है? एक-एक शब्द सोच-समझकर लिखा गया लगता है, हालांकि कुछ भी थोपा हुआ नहीं लग रहा. सब कुछ सामान्य लग रहा है. अर्जुन के आने से इंसानियत का एक और रूप नज़र आने लग गया है. अंत में शबनम का दरवाज़ा खोलने पर पुलिसवालों को देखकर चौंकना और कड़ी का समाप्त होना, उत्सुकता को बढ़ाने के लिए जरूरी था. अत्यंत रोचकता से भरपूर एक और लाजवाब कड़ी ने उत्सुकता को और अधिक बढ़ा दिया. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! मुनीर का अपराधबोध एक अपराधी के मनोभावों को प्रकट करता है जबकि शबनम अपने पति की सलामती व बच्चों के भविष्य को लेकर बेचैन है जो कि एक आम भारतीय नारी की मनोदशा को प्रकट करता है । अर्जुन के जैसे किरदार आज भी हमारे देश में ग्रामीण क्षेत्रों में मिल जाएंगे जो हमारी सभ्यता संस्कृति व गंगा जमुनी तहजीब का वाहक है । कुछ अनुत्तरित सवाल ही कहानी में उत्सुकता पैदा करते हैं और आपको मेरी यह कोशिश भी अच्छी लगी जानकर मुझे अपने सही राह पर चलने की खुशी महसूस हो रही है । बेहद सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से आभार ।
राजकुमार भाई , जुर्म एक ऐसी चीज़ है, जिस में सारा घर लगातार गुन्झ्लों से भरता जाता है . हमारे एक टीचर कहा करते थे ” जिस का वास्ता कभी पुलिस के साथ न पढ़ा हो, उस ने दुनीआं का कुछ नहीं देखा ” कहानी, बहुत अछि जा रही है .
आदरणीय भाईसाहब ! आपने बिल्कुल सही फरमाया है जुर्म एक ऐसी चीज है जिसमें पूरा घर गुनाहों से भरता जाता है । लोग दुआओं में भी यही मांगते हैं कि उनका कभी भी किसी डॉक्टर , वकील या पुलिसवाले से कोई पाला न पड़े । इनमें से किसी से भी मिलो तो वह कुछ न कुछ जिंदगी का यादगार सबक दे जाता है । आपको तो डॉक्टरों का लंबा अनुभव है । बेहद सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद । वैसे मैं खुशकिस्मत हूँ इनमें से किसी से भी मेरे अपने लिए पाला नहीं पड़ा है ।