गज़ल
“गज़ल”
तुझे दर्द कहूँ या खुशी
आंखों को चुभी बेवशी
छुट हाथ ले लो तिरंगा
अभी उम्र है, कि बदनशी।।
भूख आजादी गरीबी
आहत आँसू है कि हँसी।।
भूख पक गई इक रोटी
बता कैसी है खुदकशी।।
निहार तो इनका बचपन
किधर ले आई मयकशी।।
ध्वज रोहण वंदे मातरम
जय जय जय स्वतंत्र वर्षी।।
‘गौतम’ ये दृश्य तो देख
कोमल अंकुर पथ अरि सी।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी