कविता

प्रकृति का यौवन

द्रुम की डालियाँ
काले घुंघराले कुंतल है 
जलमाला का कलकल जल
रसबिम्ब है जिसके
झील-सी लोचन
बहता शीतल झरना
जिसके माथे का सिंदूर है
अचल-सी छाती है
हिम-सी हसीन वादियां
खुला नील-सा सारंग
देखकर लगता है
प्रकृति किसी नवमल्लिका की भांति
यौवन दिखा रही है
जिसकी चेहरे की लालिमा
स्वर देकर बुला रही है ….

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]