हिन्दू को नही मिला सकता हूँ
बून्द बून्द से बांध बना सकता हूँ
मैं धागे से कपड़ा बना सकता हूँ
राजनीति को भी हिला सकता हूँ
मजबूर हो के कहता हूं दोस्तो मैं
कि हिन्दू को नही मिला सकता हूँ
सौहार्द अयोध्या में देख सकता हूँ
काश्मीर में पत्थर फेंक सकता हूँ
सत्ता की छाती में रेंग सकता हूँ
पर लाचार हो के कहता हूं दोस्तो
कि हिन्दू को नही मिला सकता हूँ
चीन का बहिष्कार कर सकता हूँ
अमेरिका को हाँथ बढ़ा सकता हूँ
बलूचिस्तां का हक़ दिला सकता हूँ
मायूश होकर के कहता हूं दोस्तो मैं
कि हिन्दू को नही मिला सकता हूँ
तीली से भीषण आग लगा सकता हूँ
बेमौसम ही मैं बारिश करा सकता हूँ
मामूली दुर्घटनाओं से डरा सकता हूँ
असहाय होके आज कहता हूं दोस्तो
कि मैं हिन्दू को नही मिला सकता हूँ
— संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”