ग़ज़ल
तू मिले ना मिले , गिला नहीं कोई
खबर दे सके मुझे ,मिला नहीं कोई
आयातों ने नवाजा हो जिसे खुद
उससे नूर ए नज्म हिला नहीं कोई
खुशामदी में कोई हीलाहवाली तो नहीं
बकने के लिए ये, मुँह खुला नहीं कोई
रुख ने रुखसार तेरे कैसे गुदगुदाए होंगे
हाल ए बयां बताने को , रुका नहीं कोई
मुद्दत हो गए झलक की दीदारी को हमे
तरसीफ लाये मेहमाँ यहां दिखा नहीं कोई
मगरूर हो गयी है अजनबी में तू इतनी
कि दस्तको में भी वक्त मिला नहीं कोई
बेकरारी है दिलोजॉ से पर ये प्रखर तुझसे
चाहत बरकरार हो दिल मिला नहीं कोई
— संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”