ग़ज़ल
थक गया था , तरन्नुम ने तेरी जौहर दिखाया
जागा नींद से मैं , अंजुमन ने गौर फरमाया
हैशियत टूटी उनकी जिन्होंने रुतवा बताया
सख्शियत जीती तब , जब तूने कहर बरफाया
आवाज के आगोश में इस तरह सिमटा “संघर्ष”
कि टूटी गलियों ने फिर से नया शहर बसाया
व्यथित मन ने हुंकार की टंकार बजायी ऐसी
कि रौद्र रूप में शांत चिर ने हर पहर बिताया
शुक्रिया तेरे राग ,तेरे गीत और तेरे अलाप को
जिसने बेजान इन्शान को एक लहर बनाया
खोजता रहा खण्डर में समेट कर एक एक ईंट
जब तूने सुरों से ह्रदय में एक महल बनाया
ऋणी हूँ मैं हमलावर उस तेरे अंदाज का आज
जिसने बीते लम्हो का याद एक एक पहर कराया
बस सुगबुगाहट रहे इन तानों की हर दम मुझे
ताकि अम्रत पिलाऊँ उन्हें जिन्होंने जहर पिलाया
कौंध गया हूँ उस तस्वीर को निहार के जिसने तुझे
बिन सुने ही मुझे तकलीफ और कसक बनाया
— संदीप चतुर्वेदी “संघर्ष”