लघुकथा

चोट

“ये क्या कर रहे हो दोनों बरसात में ? भीगकर बीमार पड़ जाओगे?”
“दादी, रेन कोट पहने हैं हम दोंनो, भीगेंगे नहीं | ”

“इस बूंदाबांदी में भी कोई वृक्ष की जड़ों में पानी डालता हैं क्या ?” पेड़ के पास उन्हें झुके हुए देखकर बोलीं |
“जल्दी आओ अन्दर नहीं तुम्हारे पापा-मम्मी मुझको डांटेंगे|”
“नहीं दादी , वृक्ष को पानी नहीं दे रहे थे, बल्कि बिल्ली मौसी को पानी पिला रहे थे| ”
“बिल्ली पी रही थी !!”
“नहीं, वो भी पानी देखते ही भाग गई| फिर पेड़ के पास अपने पंजो से मिट्टी खोदने लगी | शायद उसे भी पता कि पेड़ को पानी की जरूरत होती है|”
“पर बच्चों, वृक्ष बरसात से ही पानी इकट्ठा कर लेता है | पानी तो पौधों को यानि जो नन्हें-मुन्हें पेड़-पौधें होते हैं उनमें डालते है”

” क्यों दादी?”

“क्योंकि उन नन्हें पौधों को ही देखभाल और प्यार की जरूरत होती है| बिना पानी के वो खत्म हो जाएंगे। बड़े पेड़ो को देखभाल की कोई जरूरत नहीं होती है| जितने पुराने होते जाते हैं जमीन से पानी खींचने की उनकी शक्ति बढ़ती जाती है|”
“अच्छा ! मतलब हैं वैसे ही न!!”
सुनते ही दादी की ऑंखें नम हो गई.

सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|