गीत/नवगीत

तुम मिलो ना मिलो मग्न संसार में

कौन जाने कि कल वक्त कैसा यहां
तुम मिलो ना मिलो मग्न संसार में,
चार पल की मिली ज़िंदगानी यहां
दो घड़ी का मिलन कोई सुंदर सपन
आस की साँस घूंघट में टूटे न अब
दो घड़ी ही सही प्रीत जी लो सजन ।।

आज सूरज जो लेकर गगन है चढ़ा
साँझ लेकर वो पल में निकल जायेगा
रात आई सुहानी लेकर सपने जवाँ
चाँद देकर मुहूरत पिघल ढल जायेगा
पास बैठो यूँ ही हाथ पर हाथ रख
कल ये अवसर भी करवट बदल जायेगा।।

एक सुंदर चमन सा जो सजाया यहां
फूल ही फूल आज जिसका श्रृंगार है
ये भी कब तक टिेकेंगे नष्ट संसार में
रूप यौवन की भी तो तयशुदा उम्र है
सृष्टि का हर नियम वक्त पर ही टिका
वक्त की कर रहे सब गुलामी सजन ।।

आज कह लो वो सारी कही अनकही
पल में मौसम ये ठग के निकल जायेगा
चाँद कब तक रहेगा यूँ खामोश अब
कब तलक गाएंगे ये तारे मंगल सजन
रीत बढ़कर निभा लो नयन डोर बंध,
मैं तो तेरी सजन, मैं हूँ तेरी सजन ।।
प्रियंवदा अवस्थी

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।

2 thoughts on “तुम मिलो ना मिलो मग्न संसार में

  • प्रियंवदा अवस्थी

    सादर धन्यवाद सर

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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