बाबागिरी के नाम पर अधर्म का कारोबार
कभी संत महात्माओं के लिए विख्यात रहा अपना भारत आज ढोंगी बाबाओं के कुकर्मों के लिए शर्मसार होने को मजबूर है। ये वही देश है जहां कभी एक से बढ़कर एक महान श्रषियों ने जन्म लिया था और हजारों वर्ष पूर्व किये अपने तप और आविष्कारों से इस सदी को भी उपकृत किया है। फिर चाहे वह ऋषि पतंजलि का योग हो या ऋषि चरक की ‘चरक संहिता’। सभी ने अपने अपने स्तर पर अपने महान आविष्कारों से पूरे विश्व को उपकृत किया है।
आयुर्वेद के रहस्य से परिपूर्ण ग्रंथ ‘चरक संहिता’ लिखने वाले आचार्य चरक ने शरीरशास्त्र, गर्भशास्त्र, रक्ताभिसरणशास्त्र, औषधिशास्त्र इत्यादि विषयों में गंभीर शोध किया था और अपने ज्ञान से मधुमेह, क्षयरोग, हृदय विकार आदि रोगों का निदान एवं औषधोपचार बताया था। और आगे चलकर इसी चरक संहिता के ज्ञान से यूनानी चिकित्सा का विकास हुआ।
उसी प्रकार महान ऋषि आर्यभट्ट ने वेद, उपनिषद आदि का अध्ययन करके प्राचीन काल में ही यह बता दिया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर रहते हुए सूर्य की परिक्रमा पूरी करती है। और आज का आधुनिक विज्ञान भी उनकी इस शोध को स्वीकृति प्रदान कर चुका है।
तो वहीं भारत में सुश्रुत को विश्व का पहला शल्य चिकित्सक माना जाता है। आज से करीब 2,600 साल पहले सुश्रुत युद्ध या प्राकृतिक विपदाओं में अंग-भंग होने वाले रोगियों को ठीक करने का काम करते थे। सुश्रुत ने 1,000 ईसापूर्व अपने समय के स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के साथ प्रसव, मोतियाबिंद, कृत्रिम अंग लगाना, हड्डी जोड़ना, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की जटिल शल्य चिकित्सा के सिद्धांत प्रतिपादित किए थे।
भास्कराचार्य ने सन् 1163 ई. में ‘करण कुतूहल’ नामक ग्रंथ के माध्यम से यह बता दिया था कि जब चन्द्रमा सूर्य को ढंक लेता है तो सूर्यग्रहण तथा जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा को ढंक लेती है तो चन्द्रग्रहण होता है। यह पहला लिखित प्रमाण था जब लोगों को गुरुत्वाकर्षण, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की सटीक जानकारी होने लगी थी।
इस तरह अपने शोध और वैज्ञानिक आविष्कारों से दुनिया को चमत्कृत करने वाले हमारे ऋषि-महाऋषियों ने इस देश की पावन भूमि को विश्व गुरू के सर्वोच्च पद पर आसीन करा दिया था। पर आज वही भूमि ढोंग की चरम सीमा लांघ चुके बाबाओं के कारण अपमानित हो रही है। हमारा सहस्र वर्षो पुराना सनातन धर्म आज चंद गुरु-घंटालों की वजह से अपना सम्मान खो रहा है। और इसकी असल वजह राम-रहीम ,आसाराम,रामपाल जैसे ढोंगी स्वयंभू बाबा हैं। इनसब ने आध्यात्मिकता के नाम पर लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। उन्हें उल्लू बनाया है। ऐसे अधिकत्तर ढोंगी साधु धर्म के नाम पर लोगों को बहला-फुसलाकर या डरा-धमकाकर अपनी दुकान चलाते हैं। ये लोगों को मोक्ष तथा पाप-पुण्य के झांसे में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। और सबसे कमाल की बात यह है कि ऐसे पाखंडियों के चक्कर में गरीब-अनपढ़ों के साथ-साथ उच्च शिक्षित और सभ्य कहे जानेवाले लोग भी फंस जाते हैं।
देश की सत्तासीन सरकारों और प्रशासनिक अधिकारियों की मिली भगत के कारण ही ऐसे बाबाओं का समाज पे एकाधिकार चलता है। इन चालबाज बाबाओं क समाज पर इतना अधिक प्रभाव होता है कि नेता से लेकर मंत्री तक और आधिकारियों से लेकर संत्री तक इनके चरण छूने को आतुर नजर आते हैं। कई बार तो देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे हुक्मारानों को भी ऐसे चालबाज बाबाओं की शरण में बैठे देखा गया है। और इस तरह की गलतियों से ही ऐसे ढोंगी और कपटी बाबाओं को साधारण और कमजोर लोगों पर अत्याचार करने का लाइसेंस मिल जाता है। और इस बात का प्रमाण राम-रहीम को उसके अंजाम तक पहुंचाने वाली चिट्ठी से मिलता है।
अगर इस चिट्ठी पे यकीन करें तो राम रहीम अपने डेरे की लड़कियों पर जुल्म ढाने से पहले और बाद में उनपे अपने राजनैतिक और प्रशासनिक प्रभाव का धौंस जमाता था। अपने अनुचरों को अपने इसारों पर नचाने के लिए वो सरकारी मशीनरी पर अपने एकाधिकार की धमकी देता था। जो कहीं ना कहीं सच था। और इसके लिए वे सभी मंत्री और अफसर जिम्मेदार हैं जो अपने पद की गरिमा को धूमिल करते हुये उसकी शरण में जाकर उसके चरणों में मत्था टेकते थे। और ऐसे में वे सारे नेता और सरकारी कर्मचारी भी उसके पापों में बराबर के भागीदार हैं, जिनकी पावर और पॉजिशन ने सैंकड़ों अपराधों के बाद भी बाबा को भगवान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा था।
धर्म के नाम पर ये हमारा जाहिलपना ही है जो एक रेप और हत्या के आरोपी चालबाज बाबा के लिए लाखों की संख्या में सड़कों पर उतर कर उत्पात मचा रहें हैं। एक पापी को बचाने के लिए कई निरपराध मासुमों की जिंदगियां छिन रहें हैं। ये हमारे धर्म का सबसे निकृष्टतम् स्तर है जो कई जिंदगियों को बर्बाद करने वाले एक रेपिस्ट को, हत्या,हिंसा जैसे अपराधों से जुड़े एक भयानक अपराधी को अपना भगवान मान बैठे हैं। अपनी अंध श्रद्धा में हम इतने मशगूल हो गये हैं कि हम ये भूल रहें हैं कि एक आम इंसान को महान बनने के लिए सारी उम्र तप करने पड़ते हैं। निस्वार्थ भाव से मानवसेवा करनी पड़ती है। एक पुरुष तभी महापुरुष बन सकता है जब वो औरों का दुख दूर करने के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करे। एक इंसान को महान बनने में ही अपनी पूरी जिंदगी लगा देनी पड़ती है, ऐसे में किसी इंसान को भगवान का स्थान पाने के लिए अपने स्वार्थ से उपर उठकर मानवता के लिए अपना सर्वस्व त्याग करना पड़ता है। त्याग और बलिदान ही इंसान को महान बनाते हैं; ना कि चंद जाहिल-गंवार,स्वार्थी चमचे।
खुदको भगवान कहने वाले ऐसे पाखंडियों को सरेराह सजा दी जानी चाहिये,जिससे औरों को भी सीख मिल सके। ऐसे दुष्ट प्रवृति के लोगों को सजा देने की जिम्मेदारी ऐसे संगठन और नेताओं की होनी चाहिये जो खुद को धर्म का ठेकेदार मानते हैं। ऐसे लोग सिर्फ निहत्थे प्रेमियों और गरीब-मजलूमों पर ही अपनी मर्दानगी दिखाने का मौका ढूंढते हैं जबकि खुलेआम धर्म का मजाक बनाने वाले बाबाओं के खिलाफ बोलने में इनके हाथ-पैर थर्रथराने लगते हैं। यह देश का दुर्भाग्य है कि हमारे समाज में धर्म के नाम पर धर्मगुरूओं को खुलेआम अपराध करने की छूठ मिलती है। फिर अंधभक्तों से मिली अथाह संपत्ति के कारण उनका रूतबा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है, जिससे वे निरंकुश क्षमता के नशे में खुदको भगवान मानने लगते हैं। इनके इस नशे का पाड़ा तब और अधिक चढ़ जाता है जब इनके अनुयायी इन्हें अपना भगवान स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। ये सारा खेल डर और लोभ का है।
वो तो भला हो देश की सर्वोच्च व उच्चतम न्यायलयों का जिनमें आज भी ईमानदार और कर्मठ जज कार्यरत हैं। और जिनकी ईमानदारी और न्यायपरायनता ने देश में न्याय की उम्मीद जगाये रखी है। तभी तो धर्म के नाम पर अधर्म फैलाने वाले ऐसे ढोंगी साधु आज कालकोठरी में अपने किये की सजा काट रहें हैं और उनकी सल्तनत सरकारी खजाने को समृद्ध बना रही है।
मुकेश सिंह
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इन ढोंगीओ केलिए कुछ न कुछ अनोखे तरीके से सजा मिलनी चाहिए!!!!! सुन्दर लेख !!