गीत
समझौते हैं, रिश्तों में अब कहाँ मिठास रही ?
सिर्फ औपचारिकता है,अपनापन नही रहा ।
रिश्तों का जो बंधन है ,मनभावन नही रहा ।
पावन प्रेम की सुघर कल्पना बड़ी उदास रही ।
समझौतें हैं ………………………
अब मशीन हो गया आदमी ,रात नही होती ।
कई कई दिन तक अपनों से बात नही होती ।
बूढ़ी माँ की आँख में आँसू, प्रेम की प्यास रही ।
समझौते हैं ………………..
माँ के स्तन नोचे ,सिद्ध निषिद्ध खा गये ।
मानवता की लाशें भी ,ये गिद्ध खा गये ।
फिर भी भूखें रहे ,जब तलक चलती साँस रही ।
समझौतें हैं …………….. ..
© दिवाकर दत्त त्रिपाठी