सामाजिक

बाबा ……. रे बाबा

निर्भया जैसी बच्चियों के लिए संवेदना प्रकट करने वाले हमारे समाज के हितकारी लोगो को अचानक ऐसा क्या दिखाई दे जाता है कि राम और रहीम के नाम को कलंकित करने वाले एक पुरुष को महापुरुष मान कर भेड़ों की तरह झुण्ड में उपद्रव करते दिखाई दे रहे हैं। कहने भर को क़ानून व्यवस्था में विश्वास है इन लोगों का,वरना जिन महिलाओं को न्याय मिला है न्यायपालिका से यह उनके साथ क्यों नहीं खड़े दिखाई दे रहे। पढ़े लिखे समाज के यह कुछ लोग जिस तरह से अराजकता फैला रहे हैं यदि इन्हे आतंकवादी की संज्ञा दी जाये तो इसमें गलत क्या होगा। खुली आँखों से नहीं देख पाते हम कि किस तरह ये कुछ ढोंगी पुरुष हमारे विवेक को अपने वश में कर लेते हैं और फिर जैसे चाहें वैसे इस्तमाल करते हैं। क्या जो ये हमें बताते हैं हमें उसका भान नहीं होता….? क्या कुछ भी नया बताते हैं यह ? क्यों हम इनकी जीवनचर्या देख कर यह आंकलन नहीं कर पाते की यह खुद कितने आसक्त हैं। साधू, संत, बाबा ,ज्ञानी की परिभाषा भी इन्हे पता होती है क्या… जबकि भोग और विलास की दिनचर्या होती है इनकी।
क्या होते हैं सज्जन पुरुष — सरल शब्दों में अर्थ है मन,वचन,और कर्म में सद्भाव से भरा व्यक्ति जो इच्छा और लालसा से दूर रहे और स्वार्थ से परे हो !
अगर उपरोक्त कथन का अवलोकन करें तो हम देखेंगे कि वर्तमान में अधिकतर कहे जाने वाले संत या बाबा इस परिभाषा से कोसों दूर हैं।
क़ानून के शिकंजे में कसने के बाद या फिर आरोप सिद्ध होने के बाद इनके आश्रमों की तलाशी ली जाती है तो भोग विलास की सभी सुविधाओं से लैस मिलते हैं यह आश्रम ! क्या करना होता है इन्हे पाँच सितारा सुविधाओं का , महंगी महंगी गाड़ियों का जबकि ये मोह माया से परे होते हैं !
सिर्फ यही नहीं कि कम पढ़ी लिखी शोषित वर्ग की जनता ही होती है इनके अनुयायियों में ,ज्ञान विज्ञानं ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ,सोशल नेटवर्किंग पर खूब चैतन्य रहने वाले हममें से पढ़ा लिखा वर्ग भी इनको सर पर बैठने से नहीं चूकता।कहने को तो बाबा लोग पथभ्रष्ट लोगों को इंसान बनाने का काम करते हैं पर यह कैसा ज्ञान बाटतें हैं यह बाबा कि जब इन्ही बाबा लोगों पर कोई विपत्ति आ जाती है तो इनके अनुयायी ,उपद्रवी बन जाते हैं। यह कैसे इंसां हैं बाबा के जिनमे इंसानियत कतरा भर भी नहीं।
आजतक यह समझ नहीं आया मुझे की जो जनता इन्हे भगवान् बना कर पूजा करती है वह कैसे इन सब चीज़ों को अनदेखा करती है ! जनता को मोह माया के जाल से दूर रखने की सीख देने वाले यह तथाकथित बाबा उसी माया का जम के प्रदर्शन करते हैं और हम निरी मूर्ख जनता उनके इस प्रदर्शन पर अपनी आँखें बंद किये खुश होते हैं। हम उन प्यासों की तरह व्यवहार करते हैं जिनके लिए माया के रेगिस्तान में एक ही कुआँ होता है और उनके हाथ का बर्तन फूटा होता है और कुँए के पास पहुँचने पर बर्तन के उस फूटे छेद को दूसरे हाथ से बंद करके उसी रेत को पानी समझ कर अपने अंदर उड़ेल लेते हैं और अपनी बुद्धि और विवेक पर मिटटी की तहें चढ़ा लेते हैं।
कब तक खुली आँखों के अंधे बन कर भटकते रहेंगे हम और करवाते रहेंगे खुद का ही शोषण …….. ? ये सोचने की बात है।

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]