पिरामिड
“पिरामिड”
(1)
ये
भूख
भरम
विलासिता
धर्म की छाँव
है जश्ने बहार
भीड़ अपरंपार।।
(2)
ये
कुंठा
कल्पना
दुष्ट स्वभाव
कलुषित राह
छलनी हुई श्रद्धा।।
(3)
रे
मन
मूरख
आँखे खोल
लालच छोड़
साधु मंशा स्नेह
रूप बहुरूपिया।।
(4)
न
बना
घरौंदा
अंधे कूप
विषैले सांप
बिगड़ता पानी
जन्म जीव मंथन।।
(5)
ये
जेल
सलाखे
दंड मिला
कैदी नंबर
कर्म का भोग है
धर्म खिलौना नहीं।।
महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी