वैश्विक परिदृश्य में हिंदी : एक अवलोकन
इक्कीसवीं सदी ‘विश्व समाज’ की संकल्पना को साकार करने की सदी है. आज सारा जगत एक ही सूत्र में बन्ध रहा है. यह सूत्र जिस विचार धारा के लिए प्रवाहमान है. यह विचार धारा है ‘आधुनिकीकरण’ की विचारधारा . जो सारे वैश्विक समाज का ताना-बाना बुनती है. जो वैश्विक समाज की संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए जो सभी अवयव महती भूमिका का निर्वहन करते है, उनमे से एक है ‘भाषा’. निस्सन्देह हिन्दी आज सारे विश्व में ‘अंतर्राष्ट्रीय भाषा’ के उस आसन पर विराजमान है. किंतु साथ ही अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश, अरबी, मंडरिन भाषाएं भी विश्व भाषाएँ बन चुकी है.
आंकड़ों के अनुसार विश्व के लगभग एक सौ पचास विश्व विद्यालयों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है. मारीशस विश्व का एकमात्र ऐसा देश है, वहांकी संसद ने हिंदी के वैश्विक प्रचार के लिए और उस संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा के रूप में प्रतिष्टित करने के लिए विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना की है. बारह लाख की आबादी वाले इस देश में पांच लाख हिंदी भाषी हैं. 1589 से अध्यापक गण इस देश में हिंदी भाषा एंव इसके त्रिकाल गौरवशाली साहित्य में लगे हैं. मारिशस में हिंदी साहित्य की बहुतामय सर्जना की जा रही है. राजा हीरामन तथा राजरानी गोबिन जैसे कवि यूभ इस देश में बैठकर हिंदी कविता के माध्यम से पटल पर हिंदी साहित्य के महत्त्व को रेखांकित कर रहे हैं.
भारतीय हिंदी की सुंदरतम बोलियाँ यथा अवधी, मगधी, भोजपुरी और मैथिली भाषा के सम्मिश्रण से ‘सूरीनाम’ की हिन्दी बनी है. जिसे सरनामी हिंदी कहा गया है. सन 1977 से ‘हिंदी परिषद्’ नामक स्वौच्छिक संस्था हिंदी भाषा तथा साहित्य के उत्थान पथ की विशेष मार्गदर्शीका सिध्द हुई है.
त्रिनिदाद एंव टोबैगो द्वीप समूह की जनसँख्या लगभग दस लाख है. उसमे अप्रवासी भारतीय चालीस प्रतिशत से अधिक है. यहाँ 1987 से सरकारी संस्था ‘निहस्तर’ में हिंदी के अध्यापकों को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ. यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज़ में हिंदी पीठ की स्थापना हुई है. 1996 में पांचवा विश्व हिंदी सम्मलेन यही आयोजित किया गया था. काफी बड़ी संस्था में यहाँ पर शोध- कार्य हो रहा है तथा रचनात्मक साहित्य भी लिखा जा रहा है.
इंग्लैंड में हिंदी का स्थान भी अमेरिका की तरह ही यशस्वी है. यहाँ पर कार्यरत हिंदी साहित्य सेवी संस्थानों की सूची लम्बी है. जिनमें से भारतीय भाषा संगम, गीतांजलि, बहुभाषिक साहित्य समुदाय, यू.के. हिंदी समिति, हिंदी भाषा समिति, चौपाल, कृति यू.के. कृति इंटरनेशनल कथ यू.के. आदि उल्लेखनीय है. इस देश में रहकर हिंदी साहित्य की सर्जना करने वाले रचनाकरों की सूचि विशाल है. जिसमें दिव्या माथुर, राजेन्द्र शर्मा, उषा राजे सक्सेना, नीना पॉल, उषा वर्मा, महेंद दवेसर, कादंबरी मेहरा, नीरा त्यागी प्रमुख है. उल्लेख्य है कि भारतेंद्रू युग में इंग्लैंड वासी व हिंदी विद्वान श्री फ्रेडरिक पिंकाट ने साहित्यक पत्रकारिता के क्षेत्र में अन्मोल योगदान दिया था. उन्होंने उस समय जब भारत पर अंग्रेजों का शासन था एंव अंग्रेजी के वर्चस्व को बढाने की कुनीति ब्रिटिश सरकार अपना रही थी, तब इन्गलैंड में रहते हुए विपुल मात्रा में हिंदी साहित्य का सूजन किया. जिस से वैश्विक पटल पर हिंदी साहित्य का महत्त्व स्पष्टत: परीलाजित हो जाता है.
रशिया में प्रारंभ से ही लोग हिंदी में रुचि लेते रहे हैं. यहाँ प्राथमिक स्थर से लेकर विश्व विद्यालय स्थर तक हिंदी का पठन-पाठन होता है. मार्को विश्व विद्यालय, रूसी मानविकी विश्व विद्यालय, सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय, अन्तराष्ट्रीय सम्बन्ध संसथान सहित लग-भाग दो दर्जन संस्थानों में डेढ़ हज़ार से अधिक विद्यार्थी हिंदी का अध्ययन कर रहे हैं.
फ्रांस के सौरबेन विश्व विद्यालय में हिंदी भाषा एंव साहित्य संबन्धी पाठ्यक्रम है. चीन के भी पेइचिंग विश्व विद्यालय तथा नानचिंग विश्व विद्यालय मे हिंदी के पठन-पाठन की व्यवस्था है. भारतीय विद्या विभाग के संस्थापक प्रो. चिशमेन ने वाल्मीकि रामायण, गोदान, राग दरबारी का गंडारिन भाषा मे अनुवाद किया है.
विश्व के सबसे प्राचीन लोकतंत्र अमेरिका में दो करोड़ से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं. वहां हार्वर्ड, पेन, मिशिगन,भेल, आदि विश्व विद्यालयों मे हिंदी का शिक्षण हो रहा है. अमेरिका के लगभग 75 विश्वविद्यालयों मे हिंदी पढ़ाई जा रही है. हिंदी का अध्ययन करने वाले छात्रों की संख्या लगभग 1500 से अधिक है. हिंदी के लिए कार्यरत संस्थाओं में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, विश्व हिंदी समिति, हिंदी न्यास आदि प्रमुख है. अमेरिका से प्रकाशित होने वाली हिंदी पत्रिकाओं विश्वा, सौरभ हिंदी जगत, डितिज विश्व विवेक, नाल भारती, हिंदी चेतना आदि प्रमुख है. ये पत्रिकाएँ निरंतर हिंदी साहित्य के विकास के लिए श्रमारत है. असंख्य हिंदी कवि, लेखकमन इस देश मे रहकर हिंदी साहित्य सेवा कर रहे हैं.
निष्कर्षत: यह माना जा सकता है कि हिंदी की महती भूमिका आज न केवल राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने के लिए अनुभूत हो रही है, बल्कि उस भाषा के साहित्य में सकल विश्व को प्रेम व ज्ञान सौरभ से सज्जित व परिमार्जित करने के भी अनुपम क्षमता है. जिससे स्पष्तः विश्व स्थर पर हिंदी साहित्य का अनुपम महत्त्व परिलक्षित व प्रतिफलित होता है.
— सय्यद ताहेर