गीतिका/ग़ज़ल

हो न जाये कही बदनाम मिरे साथ न चल।

हो न जाये कही बदनाम मिरे साथ न चल।
साथ उछले नहीं ये नाम मिरे साथ न चल।

चाहते हम नहीं की यार लगे तुझ पर अब
फिर कोई इक नया इलज़ाम मिरे साथ न चल।

दौर माना कि बुरा है ये, समझ हमको बस
लाख सहते हुये इलज़ाम मिरे साथ न चल।

घात आपने तेरे कर दे ना खबर है सबको
बात भी होगी सरेआम मिरे साथ न चल।

शाम ढलती मेरी ऐ काश तेरे पहलू में
साथ कोई नहीं हमनाम मिरे साथ न चल।

गम मेरा न बदल यार सफर आधा है
उस सुकू में नहीं आराम मिरे साथ न चल।

आज कितना बुरा देखो हुआ जग राज
खास ही देने लगे दाम मिरे साथ न चल।
राज सिंह

राज सिंह रघुवंशी

बक्सर, बिहार से कवि-लेखक पिन-802101 [email protected]