गज़ल
काफ़िया- आने, रदीफ़ – की बात कर
“गज़ल”
दिखे तो छा गए सपने, दिल लगाने की बात कर
झिझक क्यूँ पग रुके तेरे, मुस्कुराने की बात कर
बात दिगर हो तो कहना, गैरसमझ न छुपा रखना
मित्र बन गए तुम अपने, अब हँसाने की बात कर॥
देखो बागों की कलियाँ, झूमने लगी हैं बहारें
भँवरे भी मचलने लगे, गुन गुनाने की बात कर।।
नयी कोंपलें निकली, लताओं की वेल झुकाए
पुष्प गुच्छे खिले लटके, तिन सजाने की बात कर।।
याद कर मुलाकात महल, मोहक विचरती हवाएँ
झरोखों से झरती झनक, अब झुलाने की बात कर।।
बहुत कर ली वादे वफ़ा, हकीकत को क़बूलो तो
आओ तनिक पास बैठो, अब निभाने की बात कर।।
‘गौतम’ प्यारी सुबह हुई, रात बीती बहाने में
जागो देख लो लालिमा, मन मनाने की बात कर।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी