लेख– ब्रिक्स में दिखी भारत की गर्जना
आर्थिक विशेषज्ञो की माने, तो ब्रिक्स देशों की आतंरिक व आर्थिक स्थिति के आधार पर भारत की स्थिति हर दृष्टिकोण से वर्तमान में सबल नज़र आती है। उसके साथ भारत वर्तमान दौर की विश्व व्यवस्था में सबसे मजबूत जनाधार की लोकतांत्रिक सरकार है। साथ-साथ अगर अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत तेज़ी से बढ़ रहा है, तो विश्व परिदृश्य पर उसकी ताकत का प्रदर्शन बढ़ना लाजिमी है। आज अगर ब्रिक्स देशों में विश्व की दो तिहाई मानवता समाहित है, तो इन्हें आपसी संवाद, परस्पर चर्चा और साझेदारी के साथ समस्याओं का निराकरण ढूढ़ना होगा। चीन में पाक पोषित आतंकवाद को लेकर जो रुख़ ब्रिक्स देशों का परिलक्षित हुआ, वह भारत की कूटनीतिक जीत समझा जा सकता है।
यह विश्व इतिहास में पहली बार दर्ज है, कि चीन के लगातार विरोधी सुर के बावजूद घोषणा-पत्र में पाक प्रायोजित आतंकी संगठनों की कड़ी निंदा की गई। वह भी ब्रिक्स जैसे बड़े सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय मंच से। अब चीन चाहें, आंतरिक अड़ंगे के रूप मे जो नीति अपनाए, लेकिन भारत ने इस ब्रिक्स मंच से आतंकवाद का मुद्दा उठाकर पाकिस्तान और विश्व को यह संदेश देने का काम किया है, कि आतंकवाद विश्व के लिए वैश्विक और कालजयी खतरा है, जिसके लिए विश्व को कतारबद्ध होना पड़ेगा। गौर करने वाला विषय ये है, कि जिस जैश-ए-मोहम्मद के मुखिया मसूद अज़हर पर यूएन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने की दिशा में चीन अड़ंगा लगाता रहा है, आज भारत ने चीन के घर मे रहते हुए उसे आतंकवादी मनाने पर विवश किया।
शियामिन घोषणा-पत्र में लिखा गया कि, हम ब्रिक्स देशों समेत पूरी दुनिया में हुए आतंकी हमलों की निंदा करते हैं। इसके साथ सभी प्रकार के आतंकवाद की निंदा करते हैं, चाहे वो कहीं भी घटित हुए हों और उसे किसी ने अंजाम दिया हो। हम क्षेत्र में सुरक्षा के हालात और तालिबान, अल क़ायदा और उसके सहयोगी, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और हिज्ब-उत-ताहिर द्वारा फैलाई हिंसा की निंदा करते हैं। इसके साथ घोषणापत्र में आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की बात की गई। इसके साथ इस बात का भी ज़िक्र हुआ, कि किसी देश की संप्रभुता का ख़्याल रखना होगा , साथ में किसी के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं दिया जाना चाहिए। आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में हम सब एक साथ हैं। इसके साथ संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के ख़िलाफ़ व्यापक संधि को स्वीकार किए जाने के काम में तेज़ी लाने की बात भी स्वीकार की गई।
देश की देशी राजनीति में मोदी सरकार की आलोचना विपक्ष नोटबंदी जैसे मुद्दों पर कर रहीं है। ऐसे में अगर मोदी सरकार की पिछले तीन वर्ष की कमाई गई पूँजी देखे, तो ज्ञात होता है, कि सरकार ने कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय फ़लक पर जोरदार उपस्थित दर्ज कराई है। सरकार की उपलब्धियों की तूती इस तरह से बोली है, कि अमेरिका, और रूस जैसी वैश्विक शक्तियां भारत के साथ सहयोग के लिए तत्पर है। भारत की अंतर्राष्ट्रीय फ़लक पर बढ़ती चमक का उदाहरण एनएसजी में शामिल होने के साथ शुरू हुआ था, लेकिन दुर्भाग्य कि चीन को आज़ादी के साथ से ही भारत ने अपना मित्र माना। उसने ही समय-समय पर भारत को डंक दिया है। जो वीटो शक्ति चीन को भारत की बदौलत मिली, अगर वह उसी ताक़त का नाज़ायज इस्तेमाल भारत के साथ कर रहा है, तो यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। भारत भले अभी तक एनएसजी की सदस्यता न प्राप्त कर सका हो, परन्तु वह देश के लिए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लिए खतरा बन रहे आतंकवाद पर रूस और अमेरिका का समर्थन हासिल कर लिया है। पहले हिजबुल सरगना सैयद सलाहुद्दीन को अमेरिका ने अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किया। इस आदेश के अनुसार ऐसे विदेशी व्यक्तियों को प्रतिबंधित किया जाता है जिन्होंने अमेरिका के खिलाफ कोई अपराध किया होता है या फिर उनके द्वारा ऐसा अपराध करने का अंदेशा होता है। इसके अलावा किसी ऐसी आतंकी गतिविधि में शामिल होना जिनसे अमेरिकी नागरिकों, राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचता हो। अमेरिका के इस कदम के बाद सलाहुद्दीन और उसके संगठन को मिलने वाली आर्थिक मदद पर सीधा असर पड़ेगा। इसके बावजूद अमेरिका सलाहुद्दीन की संपत्ति और गतिविधियों पर सीधे नियंत्रण रख सकता है। इसके अलावा पाकिस्तान पर अमेरिका का कूटनीतिक दबाव बढ़ेगा। साथ ही साथ पाकिस्तान सरकार अब सलाहुद्दीन की सीधे पैरवी नहीं कर पाएगा।
इन सब से साफ़ है, कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत दुनिया के सामने अपना पक्ष रखने में सफल रहा। ब्रिक्स घोषणापत्र में इस बात का भी जिक्र किया गया कि आतंक के खिलाफ दुनिया के सभी देशों को मिल जुलकर लड़ना होगा, और यह जिम्मेदारी किसी एक देश की नहीं सभी देशों की है। चीन के दबे मुँह विरोध के बावजूद शांति के लिए सहयोग जरूरी है और यह आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर ही हासिल हो सकता है। उस पर अभूतपूर्व सफलता मोदी सरकार ने हासिल की है। ब्रिक्स घोषणा पत्र में आतंकवाद से निपटने के लिए तकनीक का प्रयोग के साथ आतंकवाद का विषय शामिल होना मोदी सरकार की जीत है। इस घोषणापत्र में पाक के आतंकी संगठनों लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद की निंदा की गई। इसके अलावा लश्कर और जैश के साथ तहरीक ए तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी संगठनों की भी चर्चा की गई। साथ ही साथ आतंक की फंडिंग पर भी चोट करने की मांग की गई।
इसके पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में कहा था , कि 2016 के सितंबर में सलाहुद्दीन ने कश्मीर मसले की किसी भी शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश को बाधित करने का संकल्प लिया था, और अधिक से अधिक कश्मीरी युवाओं को आत्मघाती हमलावर बनाने की चेतावनी दी थी और कश्मीर घाटी को भारतीय सुरक्षाबलों के लिए कब्रगाह में तब्दील करने का संकल्प भी लिया था। भारत ने पहले ही मई 2011 में पाकिस्तान को 50 मोस्ट वांटेड लोगों की सूची सौंपी थीं। जिसमें सलाहुद्दीन का ज़िक्र भी था। पाकिस्तान जो आतंकवाद को पुष्पित और पल्लवित करने का काम कर रहा है। उसका काला चिठ्ठा खुल चुका है। पाकिस्तान पर अब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी का दबाव बढ़ रहा है। अमेरिका की एक संस्था ने कहा है कि पाकिस्तान अमेरिका के लिए दोस्त से ज्यादा खतरा है। पाकिस्तान एक तरफ अपनी जमीन पर आतंकियों को पालता पोसता है औऱ दूसरी तरफ अमेरिका से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर अरबों रुपए की मदद लेता रहा है लेकिन अब पाकिस्तान बेनकाब हो चुका है। आतंक को लेकर उसका असली चेहरा दुनिया के सामने आ चुका है। आतंकवाद के मुद्दे पर ईरान और अफगानिस्तान भी पाकिस्तान को खुली चेतावनी दे चुके हैं। ऐसे में पाकिस्तान पर चौतरफा दबाव बनता जा रहा है। अब ऐसे में देखने वाली बात यह होगी, कि वैश्विक वज्र से पाकिस्तान अपने और पाकिस्तानी आतंकवाद को कब तल्ख़ सुरक्षित रख पाता है।
बहुत सुन्दर लेख