ग़ज़ल
हर रोज दिल पे चोट नई, खा रहे हैं हम ।
यह बात अलग है कि मुस्करा रहे हैं हम ।
नीरस है जिंदगी का गीत,भाव निठुर हैं,
मजबूरियों में फिर भी इसे गा रहे हैं हम ।
मालूम है ये दोस्त भी देगा दगा मुझे ,
पर दिल बहल रहा है तो बहला रहे हैं हम ।
तू ही है इंतजार जो करती है उम्र भर ,
कुछ देर ठहर मौत! जरा, आ रहे हैं हम ।
जंगल की नीति ,नग्नता,आतंकवाद से-
इंसान बता किस दिशा में जा रहे हैं हम ।
© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी