इंसानियत – एक धर्म ( भाग – बत्तीसवां )
असलम मानो रजिया के जाने का इंतजार ही कर रहा था । उसके जाते ही असलम पूरे जोश में बोला ” बोलिये रहमान चाचा ! आप खामोश क्यों हो गए ? जवाब नहीं है शायद आपके पास । मैं बताता हूँ रहमान चाचा ध्यान से सुनिए । सबसे पहले अल्लाह ने यह पूरी कायनात बनाई । फरिश्ते भी थे जो रात दिन अल्लाह के सजदे , इबादत किया करते थे लेकिन फरिश्तों को कायनात से या इस दुनिया से क्या लेना देना ? और तब अल्लाह ताला ने इस पूरी दुनिया पर हुकूमत करने के लिए इंसान को पैदा किया । आदम और हौवा तक की कहानी तो आप जानते ही होंगे । इंसान का वजूद इस दुनिया में पहले आया और जब ये संख्या में बढ़ने लगे तब अल्लाह ने उन्हें आला दिमाग अता फरमाया और इंसान धीरे धीरे यह समझने लगा कि वह जंगल में रहनेवाले दुसरे जानवरों से अलग है । अल्लाह की नेमत इंसान पर बनी रही और एक दिन ऐसा आया जब इंसान पूरी तरह जंगल से हटकर इंसानों के बीच रहने लगा । एक दूसरे को पहचानने लगा । अपनी बस्तियां बसा कर एक दूसरे के साथ रहना सीखने लगा । इसी रहने के सलीके को एक धागे में पिरोने के लिए हदीस की शक्ल देकर उसे सभी पर फर्ज करने का काम हमारे पीर पैगम्बरों ने किया है । वही काम दूसरे धर्मों के रहबरों ने भी किया और अपने लोगों को उसके बारे में समझाया । इस तरह से दुनिया में अलग अलग तरह से जीने के सलीके को अलग अलग लोगों ने अपने अपने लोगों को समझाया और लोग उसे मानने लगे । इसी तरह दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग धर्मों का वजूद पैदा हुआ । अगर कोई इस सलीके से कुछ अलग करना चाहे तो उसे समझाया जाता कि ऐसा नहीं ऐसा करो यह धर्म है और यही धर्म आज इंसान पर इस कदर हावी हो गया है कि अब ऐसा लगता है धर्म इंसान के लिए नहीं , इंसान धर्म के लिए बना है । कितनी नासमझी बढ़ रही है लोगों में । लानत है ऐसी समझ पर जो इंसानों को इंसानों का दुश्मन बना दे ।
इस्लाम और काफिर की बात तो हम बड़े आराम से कर लेते हैं लेकिन इस्लाम को हम आखिर कब समझ पाएंगे ? इस्लाम इंसानों में नफरत नहीं मोहब्बत पैदा करने का नाम है लेकिन आज पूरी दुनिया में इस्लाम के नाम पर क्या हो रहा है ? क्या यमन , सीरिया ,ईरान ,इराक , अफगानिस्तान व पाकिस्तान में जो इस्लाम के नाम पर इंसानियत का सरेआम कत्ल हो रहा है क्या वही इस्लाम है ? नहीं ! हर्गिज नहीं ! क्योंकि हमारा इस्लाम सिखाता है कि जब तुम पहला निवाला उठाओ उसके पहले ये तस्दीक कर लो कहीं तुम्हारा पड़ोसी भुखा तो नहीं । जो इस्लाम किसी को भुखा नहीं देख सकता मैं कैसे मान लूं कि वही इस्लाम किसीकी जान ले लेने को जायज ठहरा सकता है । अब सवाल उठता है कि क्या सिर्फ पांच वक्त का नमाजी होना ही किसी इंसान को इस्लाम का रहबर बना सकता है ? नहीं जनाब ! कतई नहीं ! आपने वह प्रसिद्ध शेर तो जरूर सुनी होगी ‘ दर्द ए दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को , वर्ना खुदा की इबादत को फरिश्ते कम न थे ……….।
वह पांचों वक्त का नमाजी जब अल्लाह की शान में नाफरमानी करके सिर्फ अपना कानून चलाये अपने मफाद का काम करे तो समझो उससे बड़ा गुनाहगार कोई नहीं है । वह मतलबी इंसान जब जेहाद के नाम पर भोले भाले युवकों को बहका कर उन्हें जन्नत व 72 हूरों के झूठे सपने दिखाकर उनसे इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले गुनाह करवाये तो वह सबसे बड़ा गुनहगार है । और मैं ऐसे गुनाहगार का समर्थन हरगिज हरगिज नहीं कर सकता । सुना आपने ! मैं कभी समर्थन नहीं कर सकता ऐसे दोजख के कीड़ों का । ” कहते कहते असलम की सांसें तेज तेज चलने लगी थीं । आवाज सुनकर रजिया फिर से बाहर आ गई थी । अभी असलम कुछ और कहना ही चाहता था कि तभी वहीं पास में स्थित मस्जिद के इमाम भी कुछ बहस की आवाज सुनकर आ गए थे । रहमान चाचा ने उन्हें देखते ही उनका अभिवादन किया । असलम ने भी उन्हें देखकर उनका अभी वादन किया और नजदीक ही पड़ी दुसरी चारपाई खींच कर उनके लिए बिछा दी । इत्मीनान से चारपाई पर बैठते हुए इमाम साहब बोले ” क्या बात है रहमान मियां ! कैसी बातें हो रही थीं । कुछ बहस हो रही थी क्या ? असलम की बहुत तेज तेज बोलने की आवाजें आ रही थीं । ”
रहमान चाचा के चेहरे की चमक बढ़ गयी थी । बोले ” अब क्या बताएं लड्डन मियां ! ये असलम का वाकया तो तुम जानते ही हो । वही इसको समझा रहे थे कि आखिर इसे क्या जरूरत पड़ गयी थी किसी काफ़िर के लिए अपने ही बंदे का खून बहाने की ? अब आप ही इसे समझाइये क्या सही है क्या गलत ? हमारी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा । ये तो हमको पता नहीं क्या क्या बोल गया ईमान धर्म के बारे में । ”
” हूं ! तो ये बात है । असलम मियां अब बड़े समझदार हो गए हैं जो आप जैसे बुजुर्ग को भी दीन और ईमान की बातें समझा रहे हैं । खैर कोई बात नहीं ये आजकल के पढ़े लिखे छोकरों का दिमाग आजकल की तालिमों ने खराब कर रखा है …….। ” लड्डन मियां अभी कुछ और कहते कि असलम का खुश्क स्वर वातावरण में गूंज उठा ” किसका दिमाग खराब हो गया है बांगी साहब ! अपने बुजुर्गों की इज्जत करना क्या खराब दिमाग की निशानी है ? अच्छे और बुरे में फर्क करना क्या खराब दिमाग की निशानी है ? दुनिया के प्रगतिशील लोगों के विचारों से तालमेल बिठाकर कदम दर कदम आगे बढ़ना क्या खराब दिमाग की निशानी है बांगी साहब ! और क्या करते हैं ये आजकल के पढ़े लिखे लड़के ? अरे हाँ ! मैं तो भूल ही गया था कि कुछ और भी करते हैं कुछ पढ़े लिखे लड़के जिसके लिए भी जिम्मेदार आप जैसे लोग हैं जो खुद को धर्म का ठेकेदार समझते हैं । जबरदस्ती अपनी सोच उन युवकों पर थोपते हैं और फिर उनसे वो गुनाह करवाते हैं जिससे इंसानियत भी शर्मसार हो जाये और यही पढ़े लिखे गुमराह युवक जो तुम जैसे लोगों की जाल में फंस जाते हैं आतंकवादी बनकर कुत्ते की मौत मरते हैं । पूरी दुनिया में इस्लाम का सिर नीचा कर देते हैं …….”
अभी अपनी ही रौ में असलम और भी कड़े शब्द कहने ही जा रहा था कि बांगी साहब बीच में ही चीख पड़े ” कुत्ते की मौत नहीं मरते बेवकूफ लड़के ! वो जिहाद करते हैं और तुझे इल्म भी है जिहाद किसे कहते हैं ? जिहाद जन्नत नशीं होने का सबसे कारगर और पुख्ता रास्ता है । लेकिन तुझे क्या पता चलेगा ? तू तो शहर में काफिरों के संग रहकर पूरी तरह से काफ़िर बन गया लगता है । लगता है अब तुझे फिर से इस्लाम का पाठ पढ़ाना पड़ेगा । ”
असलम कुछ बोले उससे पहले ही रजिया जो कि वहीं उनके सामने ही खड़ी उनकी बातें सुन रही थी बोल पड़ी ” गुस्ताखी माफ कीजियेगा बांगी साहब ,रहमान चाचा ! आप लोग किस इस्लाम की पाठ पढ़ाने की बात कर रहे हैं मेरे शौहर को । मुझे उनपर नाज है और फख्र है कि उन्होंने इस्लाम को सही ढंग से पेश करने का काम समाज में करके इस्लाम को अपना सिर ऊंचा करने का मौका दिया है । माफ कीजियेगा बांगी साहब अगर आप चाहते हैं कि आपकी खून खराबे वाली तकरीरों को ही हम इस्लाम का सच मान लें तो यह हमसे नहीं होगा । इंसानियत खोने की बुनियाद पर खड़े किसी भी मजहब में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है और रही बात इस्लाम के शिक्षा की तो वो हमें आपसे सीखने की कोई जरूरत नहीं है । हम लोग पढ़े लिखे हैं । हम सारी हदीसें , सारी रवायतें खुद ही पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं । उसमें से अच्छी बातों का शुमार अपनी आदतों में कर सकते हैं तो बुराइयों का सुधार भी कर सकते हैं ।
अभी आपने पिछले दिनों देखा होगा जब सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया था और पूरे मुस्लिम समाज ने उसका दिल खोलकर स्वागत किया था । ” रजिया थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुकी ।
बहुत सुन्दर चर्चा भाई साहब !
आदरणीय भाईसाहब ! आपको इस कहानी में यह वार्तालाप अच्छा लगा यह जानकर संतोष हुआ । बेहद उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ।
प्रिय राजकुमार भाई जी, इस कड़ी को पढ़कर तो प्रेमचंद जी की याद आ गई. आप दोनों में फर्क यह है, प्रेमचंद पहले शानदार उर्दू में लिखते थे, फिर उतनी ही शानदार-जानदार हिंदी में लिखते थे, आप हिंदी में लिखते-लिखते ख़ालिस उर्दू पर आ गए हैं. दीन, ईमान, जिहाद, जन्नत, इस्लाम, हदीसें, रवायतें और अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का सटीक वर्णन मनोहारी लगा.लगा. रजिया का बेबाक कथन- ‘इंसानियत खोने की बुनियाद पर खड़े किसी भी मजहब में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है’ भी नायाब बन पड़ा है. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! यह विषय धार्मिक होने की वजह से संवेदनशील भी है इसीलिए इसका एक एक शब्द काफी सोचसमझकर लिखना पड़ रहा है । संवाद लिखते हुए पात्रों के चरित्र के साथ ही उनके परिवेश का भी ध्यान रखने की कोशिश कर रहा हूँ । यही असलम अलग माहौल में अलग भाषा में बात करते हुए मिलेगा । हमेशा की तरह यह कड़ी भी आपको अच्छी लगी जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई । बेहद उत्साहित करनेवाली सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।