कविता

बेटियाँ

गुड़ियाँ ही नहीं होती बेटियाँ
कि सजाई सँवारी जायें
होती हैं मनु और पद्मा भी
खेल जान पर अपनी देश का गौरव बढ़ायें

बेटियाँ होती हैं ममता
सींच नये पौधे को
उपवन नया बनाये

चिड़ियाँ ही नहीं होती बेटियाँ
कि एक उम्र बाद उड़ जायें बिदेस
होती हैं घर का आँगन और अटारी भी
जो रौनकें लगायें और कुल का मान भी बढ़ायें

बेटियाँ होती है घर की धुरी
अलग अलग रूपों में
घर मजबूत बनायें

– शिप्रा

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - [email protected]