गीतिका – 1
मुस्कानों को सरल बनाना , सीखे कोई हमसे !
मर्यादा में रहना भी है , सचमुच हमें कसम से !!
लम्हों को गुलज़ार बना दें , ऐसे जादूगर हैं !
आसपास परिहास सिमटता , आँचल लिपटे तन से !!
उमड़ घुमड़ कर रूप सलोना , ऐसे छा जाता है !
नज़रें नहीं मिला पाते हैं , हम तो खुद दर्पण से !!
आंखों में अचरज यों तैरे , सब के भाव बदलते !
उम्र यहां उछला करती है , मतवारे नयनन से !!
अनगढ़ औ सयाने सब यहां , राय दिये जाते हैं !
हमें जीतना हैं गढ़ सारे , साधे सही जतन से !!
आंखों में उल्लास छिपाये , भाल सदा उन्नत है !
खुशबू यहां बिखेरा करते , सांसों के मधुवन से !!
तन मन सब गुलाब से महके , मौसम हुआ गुलबिया !
यहां प्रकृति रंग भरती है , सच में अपने रंग से !!
तुमने दी सौगातें ऐसी , पल पल चहक रहे हैं !
हमको साथ निभाना होगा , जानो कई जनम से !!
— बृज व्यास