गीतिका – 2
उम्र सीढ़ीयां चढ़ती जाये , यौवन भरे कुलांचे !
कैसे दिल का हाल बतायें , मन मयूर है नाचे !!
रूप रंग तो बरसा ना है , दुख की छांव घनेरी !
काया मिली सलोनी ऐसी , कैसे इसे तराशें !!
कारी कारी अँखियों में जो , उजले ख़्वाब बसे हैं !
न्यारे न्यारे लगते है वे , सारे मुझे जहां से !!
जीवन की परिभाषा जानी , गूढ़ अर्थ है इसके !
औरों के मन की हलचल को , अंतर्मन से बाँचें !!
घाट घाट पर देखी फिसलन , बरतें बड़ी सजगता !
लोग यहां हैं इसी ताक में , कैसे भरें परांचे !!
बोल यहां हो तोल तोल कर , और हंसी को साधें !
अपने दर्पण धूल चढ़ी हो , लोग ओर को जांचे !!
हंसना है तो खुद पर हंस लो , यही राज़ है गहरा !
वरना झूंठे किस्से यों भी , लगते सबको सांचे !!
आज निशाना खुद पर साधूं कल फिर अग्नि परीक्षा !
परिणामों की उम्मीदों से , खिलना चाहें बांछें !!
— बृज व्यास