हास्य व्यंग्य

जॅानी जाॅनी यस पापा…

मुझे नई दिल्ली की सुबह नहीं सोहाती, न शाम, न रात.  हर समय गाड़ियों का झुंड, हर ओर कंक्रीट का जाल,  चिल्ल पों…पां पी… हर जगह लगे वो विज्ञापन का लंबा चौड़ा बोर्ड भी नहीं रिझाता, जिसमें यमी गौतम जी और शाहरुख खान फेयर लवली और फेयर हैंडसम बेच के मुंह चमकवा देते है, वो डियो का प्रचार कर रहा कच्छे मे 6 पैक ऐब्स वाला हीरो और चारो और से लिपटती हुई लाल, पियर, चंपई रंग लिपिस्टिक लगाई मोहतरमाए भी नहीं सोहाती.

लेकिन जब भी छोटे-छोटे बच्चों को सड़क के किनारे किनारे चलते हुए, बस्ते में वजनदार भविष्य और आंखों में कौतूहल लिए।  नन्हें नन्हें पैरों से रोड पर पड़ी हर चीजों मारते हुए, लतियाते और उन वस्तुओ दूर मारकर खुश होते हुए देखता हूं। तो खुश हो जाता हूं, सीधा फ्लैशबैक होता है और बचपन में चला जाता हूं, याद आने लगता है कि कैसे हम भी मित्रों के साथ एके कलर के शर्ट और एके कलर के पैंट पहने गाँव से तीन किलोमीटर दूर पार्लेंस स्कूल पैदल स्कूल जाने के लिए रवाना होते थे, मूली, अलुआ उखाड़ना या फिर आम खाने के लिए पत्थर चलाना और उसके बाद बग़ीचा रक्षकों को चिढाकर भागना, सारी शैतानियां आंख के सामने आने लगती है.

छोटे बच्चे चाहे वो बिहार में सुदूर गाँव के किसी स्कूल मे यूरिया और डाप खाद के बोरिया बिछा के पढ रहा  हो या मेट्रो सिटिज के 5 स्टार होटल टाईप स्कूलों मे इनके मन बिल्कुल कोरे कागज की तरह होते है, इन कोरे कागज पर आप जो लिखना चाहे लिख सकते है, इनकी बात ही निराली होती है ये खुद ही रूठते और खुद ही मन जाते है, ये जिनसे झगड़ते उन्ही के साथ रहते है, इनके लिए कोई गैर नहीं, इन्हे किसी से बैर भी नहीं.

कंधो पर बैग टांगे छोटे-छोटे कदमो से चलते हुए आस पास लगे बड़े-बड़े बोर्डो पर ‘फेयर लवली’ के विज्ञापन में सफेद रंग की चमकती दमकती यमी गौतम और ‘रिलैक्सो के चप्पल’ के विज्ञापन वाले सलमान खान से ज्यादा इन्हें आकर्षित करता हैं,  लगा हुआ आइसक्रीम का चलता फिरता रिक्शा।

ये वीवो और ओप्पो के शो रूम की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखते लेकिन पास मे किसी गोलगप्पे वाले ठेले पर रखी गणेशजी की मूर्तियों को देखते ही इशारा करते हैं- “अरे, आर्यन, आदित्य, रिया वो देख”

– “माई फ्रेंड गणेशा “।  इस पीछे और अगल बगल देखने और आगे चलने की क्रिया में किसी कभी नीचे गड्ढे में गिरते-गिरते बचते हैं तो कभी किसी से टकरा भी जाते हैं फिर मासूमियत से जल्दी बोलते भी हैं – साॅरी अंकल, गणेशा को देख रहा था।   फिर अपने घर पहुंचते, फिर अगले दिन तो स्कूल जाना है, मैथ वाला होमवर्क भी करना है, नहीं होमवर्क किया मैथ वाली मैम डांटेगी, पेट दर्द का बहाना इस हफ्ते मे एकबार कर ही चुका हूं, इसे अब अगले हफ्ते.

परसो भी सुबह वैसे ही हुई थी, जैसे अन्य दिन हुआ करती है, हां सूर्यदेव थोड़ें गरमाए लग रहे, मम्मी सो कर उठी, शाम मे ही बेटे ने कहा था कि टिफिन में सैंडविच रख देना और हां कल मेरे क्लासमेट सौरभ का न बर्थडे है, चाकलेट भी रख देना,

गंगा यमुना दोआब के किसानों को जो खुशी अपने खेतो मे लहलहाती फसल को देखकर होती है न,  मां भी उतनी ही खुशी से अपने बच्चों को तैयार करती है. हर वक्त काजल लगाना चाहती है, ताकि नजर न लगे मेरे लाल को, माँ ने अपने बेटे को तैयार किया, आज फिर वो चांद लग रहा, उसे क्या पता कि आखिरी बार आज वो इसे तैयार कर रही, पिता ने भी समय पर स्कूल पहुचां दिया, सर चूमते हुए स्कूल गेट पर ड्राप किया, मासूम कंधो पर वजनदार बैग टांगे कक्षा के बजाय बाशरूम की ओर गया है, उस मासूम को क्या पता कि मौत उसका इंतजार कर रही, अगले ही क्षण बस कंडक्टर, जिसकी यौन इच्छाए उस मासूम को देखते ही जाग्रत हो उठी, अरे इस 7 साल के मासूम को तो गुड टच और बैड टच के बारे मे भी नहीं पता, प्रतिरोधस्वरुप जब मासूम ने चिल्लाया तो उस हैवान ने चाकू से गले पर वार किया, क्या उस राक्षस के हाथ नहीं कांपे होंगे, यमराज भी ऐसे मासूमों का प्राण नहीं लेना चाहता होगा,

20 मिनट बाद ही पिताजी की फोन आया है कि आपका पुत्र जिसे आप अभी-अभी स्कूल छोड़कर गए है, उसका एक्सीडेंट हो गया है, माँ भी रोती-बिलखती हुई आई है,  उम्मीदो की हत्या हो चुकी है, पूरा स्कूल रो रहा है, हत्यारा बस कंडक्टर को तो पुलिस ले गई है, मीडिया का जमात भी उमड़ रहा है, दो तीन दिनों तक न्यूज मे छाया रहेगा, फिर सभी भूल जाएंगे, भारतीय न्यायव्यवस्था भी कछुआ की चाल से चलती, गुरुकती हुई 15-20 साल बाद सजा सुनाएगी, लोग तो भूल ही चुके होंगे, परसों से छोटे छोटे बच्चों की उंगलियां पकड़े उनकी मम्मियां भी स्कूल छोड़ आया करेंगी,

वाशरुम के चारो ओर खून पसरा है, बैग, बोतल, किताब भी खून से सना हुआ है, हवाओं के वेग से किताबों के पन्ने उलटने लगे है, आंसू भरी आंखो से सबकी नजर किताब की ओर गई है, आख़िरी पन्ने पर शायद अंग्रेजी की कोई हस्तलिखित पोएम होगा – जाॅनी, जाॅनी यस पापा…

आनंद कुमार

सीतामढ़ी, बिहार.

आनंद कुमार

विद्यार्थी हूं. लिखकर सीखना और सीखकर लिखना चाहता हूं. सीतामढ़ी, बिहार. ईमेल[email protected]