गीत
एक कलम के बूते पर मैं दुनिया रोज बदलता हूँ ।
ये मत सोंचो कवि हूँ मैं तो बस कविता कर सकता हूँ ।।
ठेले पर सपनो की दुनिया, लेकर चलने वाला हूँ ।
मैं सूरज के साथ गगन के, पार निकलने वाला हूँ ।
सागर को तो एक घूँट में, पीने का दम रखता हूँ….
ये मत सोंचो कवि हूँ मैं तो, बस कविता कर सकता हूँ ..।।
मेरी कलम सितारों को भी, आँख दिखाती चलती है ,
दिल के पन्नों के भीतर भी, एक नदी सी पलती है ।
चिंगारी लेकर आँखों में, खुद भी बहुत झुलसता हूँ…
ये मत सोंचो………….।।
रोज इरादों की रेतीली, मिट्टी को चुनता रहता ,
बीज नई आशाओं वाले, मन ही मन बुनता रहता ।
मैं अतीत का व्यापारी हूँ, कल की खेती करता हूँ……
ये मत सोंचो……..।।
— राहुल द्विवेदी ‘स्मित’, लखनऊ
8299494619