ग़ज़ल : खुद से खा गये धोखा
आंखों में खुशियां छलके है , यादें बनी झरोखा !
यायावरी हुआ है मनवा , खुद से खा गए धोखा !!
जीवन के रंगों में डूबे , प्रीत लगी फागुनिया !
दिन लगते हैं उत्सव जैसे , हाथ लगा रंग चोखा !!
हुई बावरी आज चुनरिया , सिर से सरकी जाये !
देह संदली यों बल खाये , छूट ना जाये मौका !!
दिल की धड़कन गीत सुनाती , साँसों में सरगम है !
बल खाते कुन्तल लहराये , खुशबू को है रोका !!
डूबे हैं अनुराग में ऐसे , सुधबुध खोई खोई !
राहें भी बेचैन लगे हैं , किसने तुमको टोका !!
हंसी हमारी हुई परायी , बोल न जाये बोले !
पवन झकोरे सरसर करते , देते मीठा झोंका !!
समय सीढ़ियां चढ़ बैठा है , इंतज़ार गुपचुप है !
जगमग जगमग उम्मीदों ने , आसमान सिर तोका !!
— बृज व्यास