गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : कितने बेरहम है मेरे अपने

कितने बेरहम है मेरे अपने , बेदम कर के ही माने
इश्क की झूठी तसल्ली चाही , वो गम दे के ही माने

अश्क ना भीगे गम की बरषा में ,सपने बिखरने से
वो शराब में नहाने की चाह को सितम दे के ही माने

जीने की चाह ने छोड़ दी शराब और शबाब दोनो ही
तन्हाइयो में गुनगुनाने को , वो रुदन कह के ही माने

कितने बेरहम है मेरे अपने , बेदम कर के ही माने
इश्क की झूठी तसल्ली चाही , वो गम दे के ही माने

मोहब्बत उठ गई हिलक – हिलक मेरे कांधो से ही
डोली में बैठते ही उसके , वो बेरहम कह के ही माने

रहमत की दुहाई देने वालो से जब अपना मुकाम पूंछा
हर महकमे को वो बेमुरऊअत हरम कह के ही माने

संदीप ” संघर्ष ”
06/09 /2017

संदीप चतुर्वेदी "संघर्ष"

s/o श्री हरकिशोर चतुर्वेदी निवास -- मूसानगर अतर्रा - बांदा ( उत्तर प्रदेश ) कार्य -- एक प्राइवेट स्कूल संचालक ( s s कान्वेंट स्कूल ) विशेष -- आकाशवाणी छतरपुर में काव्य पाठ मो. 75665 01631