गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दीपक बन जाऊँ या फिर मैं दीपक की बाती बन जाऊँ
दीपक बाती क्या बनना है दिपती लौ घी की बन जाऊँ

दीपक बाती घृत-युत लौ से अन्तर्मन की ज्योति जलाकर
मन-मन्दिर में बैठा सोचूँ, पूजा की थाली बन जाऊँ

पूजा की थाली की शोभा अक्षत चन्दन सुमन सुगंधित
खुशबू चाह रही है मैं भी शीतल चन्दन सी बन जाऊँ

शीतल चन्दन की खुशबू में रंगों का इक इन्द्रधनुष है
इन्द्रधनुष की है अभिलाषा तान मैं सरगम की बन जाऊँ

सरगम के इन ‘शान्त’ सुरों में मिश्रित रागों का गुंजन है
तान कहे मैं भी कान्हा के अधरों की वंशी बन जाऊँ

देवकी नन्दन ‘शान्त’

देवकी नंदन 'शान्त'

अवकाश प्राप्त मुख्य अभियंता, बिजली बोर्ड, उत्तर प्रदेश. प्रकाशित कृतियाँ - तलाश (ग़ज़ल संग्रह), तलाश जारी है (ग़ज़ल संग्रह). निवासी- लखनऊ