आसमां तक हलाल रखा है
दर्द ए बेहिसाब को कुछ यूं सम्भाल रखा है
लबों पे हँसी और आँखों मे सवाल रखा है ।।
बात इतनी सी ही हो हर बात बड़ी होती है।
ज़ुबाँ की एक धार ही ये सारा बवाल रखा है।।
रूह के रिश्तों में जिस्मों की ज़रूरत कब है।
इश्क़ अय्याश नही जो इतना उछाल रखा है।।
मन के पंछी के यहाँ पर काट दिए जाते है।
ज़मीन वालों ने आसमां तक हलाल रखा है।।
सिर्फ इंसानियत काफ़ी इंसा को समझने को।
प्यार की राह में ही हर हुस्न ओ जमाल रखा है।।
प्रियंवदा