तन्हाई आई है
निगाहों धुंध बेहद है घनी बदली सी छाई है
दिल में दस्तक देती फिर से तन्हाई आई है ।।
आब आँखों में भरा औ प्यास कि बुझती नही
जाने किस डगर चलके ये तेरी याद आई है ।।
छलछला उठी है माथे बूंदें सिसकती सी हुई
कुछ बरस पड़ने को अब सांसें हुई पुरवाई है ।।
नींद छलती आँख को ख्वाब खलबल कर रहे
हथेलियों पर बेचैनियों की पकड़ी रोशनाई है ।।
करवटों पर शेर मतले चादरों पे मचली ग़ज़ल
भीगते तकियों की कोरों बैठी मिली रुबाई है ।।
जोग बोले है कोई रोग कहे नाड़ी टटोलकर
उसी दिन जब से नज़र तेरी नज़र टकराई है ।।
प्रियंवदा अवस्थी©